15
जय जय श्यामाश्याम
विरहणी तितली 15
श्री प्रिया अपनी भाव अवस्था में सखी को श्यामसुन्दर समझ आलिंगन कर लेती है। कितने ही क्षण यूँ ही बस अपने प्रियतम श्यामसुंदर से मिल बाँवरी हुई उनके आलिंगन में रहती है। नैन खोलती है पुनः पुनः उस सखी को श्यामसुंदर समझ निहारती है और पुनः आलिंगित हो जाती है। उसके श्यामसुंदर तो कहीं गये ही न हैं। अब इस बाँवरी को कौन समझाए श्यामसुंदर तो मथुरा चले गए। ये तो सखी को ही श्यामसुंदर मान ली है।
श्यामा! श्यामा ! जैसे ही सखी पुकारती है श्यामा पुनः मूर्छित हो गिर पड़ती है। श्यामा की ऐसी स्थिति हो रही है कि उसकी प्रेम मूर्छा को देख सखियाँ घबरा जाती हैं और रुदन करती हैं। श्यामसुंदर बनी सखी पुनः वेणु वादन करने लगती है। अब इस बाँवरी को सम्भालें भी तो कैसे ?सबके नैनों से अश्रु प्रवहित हो रहे और मुख पर एक ही नाम है, श्यामसुंदर ! श्यामसुंदर !
कुछ क्षण बाद श्यामा की प्रेम मूर्छा टूटती है और इधर उधर देखने लगती है।
तुम कहाँ हो श्याम मेरे ढूंढे तेरी राधा
अखियाँ बरस रही हैं मोहन अब आ जा
तुम कहाँ हो.......
कोई तो खबर लाओ कब श्याम आएंगे
निष्प्राण हो रही है कब प्राण जायेंगे
कहाँ छिप गए हो मोहन कहाँ है तेरा पता
तुम कहाँ हो........
कबसे राह निहारे नहीं आये श्याम प्यारे
बेचैन सी बड़ी है मोहन ही बस पुकारे
हर किसी से पूछती है मोहन का क्या पता
तुम कहाँ हो .........
रोती बिलखती सी मोहन को ढूंढती है
अपनी खबर नहीं कुछ मोहन को सोचती है
कब आएं श्याम प्यारे छाई है अब घटा
तुम कहाँ हो......
पिया बिन है कोई सावन कुछ नहीं मन को भाये
नहीं मन मानता कुछ कैसे इसे मनायें
ना दिन की सुधि है ना रात का पता
तुम कहाँ हो......
श्यामा की चेतना लौटते ही स्मरण हो जाता है कि मेरे श्यामसुंदर तो बहुत दिन पहले मथुरा जा चुके हैं। हाय ! इक टीस सी उठती है और विरह वेदना से पुनः व्याकुल हो उठी है। हृदय तो कहता है लौट आओ, तुम्हारे वियोग में प्राण न रहेंगें , परन्तु मैं स्वार्थी न बनूंगी मोहन। यदि तुम्हारा सुख मुझसे दूर रहने में हो तो प्राणेश्वर तुम जहां भी रहो सदैव आनन्दित रहो। तुम्हारा सुख ही तो मेरा सुख है और अपने अश्रु पोंछती हुई चुपचाप वृक्ष के नीचे बैठ जाती है। इसके अश्रु तो जैसे तितली की आँखों में भर आये हैं। श्यामा को उसे रुदन करते देख पीड़ा न हो इसलिए तितली चुपचाप वहां से गौशाला की ओर उड़ती है।
क्रमशः
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