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जय जय श्यामाश्याम

विरहणी तितली 8

प्रियतम श्यामसुंदर के जाने के पश्चात सब प्राणहीन सा हो चुका है। जाने कब तक ये तितली प्राणहीन अवस्था में रक्त रंजित हुई झाड़ी में पड़ी रहती है। चेतना लौटती है तो सबसे पहले हॄदय से एक ही नाम निकलता है श्यामसुंदर । आँखें खोलती है तो देखती है नीलमणी श्यामसुंदर इसके सन्मुख खड़े मुस्का रहे हैं , इसकी निष्प्राण देह मानो पुनः पूर्ण चैतन्य हो उठती है और पुनः पुनः पुकारती है श्यामसुंदर! श्यामसुंदर ! परन्तु श्यामसुंदर वहां कहाँ ? हाय ! श्यामसुंदर कहाँ चले गए जैसे ही पिछली स्मृति लौटती है तितली की पुनः वही दशा हो जाती है।

     अब सोचती है मै कहाँ जाऊँ ? पुनः अपनी सखी तितलियों पास लौट जाऊँ, नहीं नहीं मुझे तो श्यामा जु के पास जाना है , हाय ! मेरी प्यारी जु की क्या दशा होगी, मैं कितनी स्वार्थी हो गयी हूँ और निर्लज्ज भी, मुझे श्यामा जु के पास तुरन्त जाना होगा। इस समय श्यामा जु कहाँ होगी, मुझे उनको ढूँढना होगा। नित्य तो इस समय वह यमुना पुलिन पर कदम्ब की छाया में प्राणप्रियतम संग होती हैं। तितली तुरन्त उस ओर उड़ने लगती है। वहां जाकर तितली आश्रयचकित हो जाती है, उसे कदम्ब वृक्ष तले श्यामसुंदर बैठे दृष्टिगोचर होते हैं। तितली अपनी आँखों पर विश्वास नहीं करती। आंखें बंद कर पुनः खोलती है तो उसे वहीं श्यामा जु नज़र आती है। तितली को लगता है पता नहीं आज उसे किस भृम हो रहा है पुनः नेत्र बन्द करके पुनः खोलती है तो उसे अपने श्यामाश्याम संग दिखाई पड़ते हैं। ये क्या कभी श्याम कभी श्यामा कभी श्यामाश्याम। तितली यह अनुभव करती है कि उसके प्राणप्यारे युगल सदा संग हैं, श्यामा जु के रोम रोम में श्याम हैं और श्यामसुंदर के रोम रोम में श्यामा। ये मथुरागमन तो मात्र उनकी लीला है, और वह उनकी लीला का पात्र। उसे पुनः निष्प्राण सी हुई श्यामा ही दिखाई पड़ती है।

    श्यामा की ऐसी दशा तो उसने पहले कभी न देखी। मलिन सा मुख , उन्मुक्त हुई वेणी श्यामा को अपने वस्त्र आभूषणों का कोई पता न है। चुनर अस्त व्यस्त पड़ी है। नेत्रों से निरन्तर अश्रु प्रवाहित हो रहे हैं। हाय ! श्यामसुंदर तुम कितने कठोर हो। सब जानते हो कि प्यारी जु एक क्षण का विरह न सह पाती, तुम्हें देखे बिना अधीर हो जाती है। इस कोमलांगी पर इतना कठोर प्रहार , किस प्रकार इसकी दशा देखूं मैं। तितली को लगता है सच श्यामाश्याम के प्रेम जैसा पूर्ण और परम् प्रेम समस्त जगत में न है। पर आज इस प्रेम का ये रूप भी देखना है। प्रियतम जाने से पहले श्यामा जु को अपनी वंशी दे गए हैं और श्यामा इसी को देखते हुए प्राण धारण किये बैठी है। तितली देखती है श्यामा की सखियाँ उसके पास आ रही हैं। अब शायद ये श्यामा जु की मनोस्थिति बदल जाए। श्यामा ! श्यामा ! एक सखी प्यारी जु को आवाज़ लगाती है पर श्यामा जु तो प्रियतम श्यामसुंदर के चिंतन में ऐसे सुध बुध बिसरा चुकी है।
हाय री सखी श्यामसुंदर प्राण प्रियतम के बिना मेरा जीवन व्यर्थ है। श्यामा को ये भी विस्मृत हो चुका कि श्यामसुंदर मथुरा गए हैं अपितु उसे ऐसे लग रहा है जैसे उसने श्यामसुंदर को एक बार भी न देखा हो। प्रियतम के बिना उसके प्राण कितने व्याकुल हो उठे। सखी जाने किस घड़ी प्रियतम के मुख को निहारूँ।

बिरहन कबहुँ पिय को देखे नित नित उर रह्यो अकुलाय
पुनः पुनः द्वार दृग कोर निहारे पिय अबहुँ आय अबहुँ आय
विधना कैसो भाग लिखे री बाँवरी बैठी नीर बहाय
आन मिलो अबहुँ पिय प्यारे व्यर्थ स्वास ना बीते जाय
प्राणन देह माँहि कैसो राखूं तू ही सखी मोहे दियो बताय
एकहुँ बार श्याम नाहीं निरखे बाँवरी दियो जन्म गमाय

क्रमशः

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