Posts

Showing posts from May, 2018

हाय कबहुँ निरखि

हाय पिय कबहुँ नयन भर निरखिहौ छब तोरी बिरहन की कोऊ सुधि न लीन्हीं कौन दसा भई मोरी बिरह अग्न तपावै क्षण क्षण जीवन आस रही न थोरी बाँवरी पिय पिय टेर अकुलाय पुनि पुनि द्वारे दौरी ...

हरिहौं कबहुँ प्रीत

हरिहौं कबहुँ प्रीत लगाती साँची नाम विहीना फिरै बाँवरी व्यर्थ ज्ञान रही बाँची व्यर्थ करै बकवाद क्षण क्षण कौ हरिप्रेम न राँची साँचो होती प्रीत कबहुँ तेरी  रही काँची की का...

बाँवरी पर उपदेश कुशल

बाँवरी पर उपदेश कुशल बहुतेरी पतित अधम जन्म जन्म की कबहुँ हरिनाम न टेरी कौन विध तेरौ होय छुटकारा कटे जन्मन कि फेरी कौन समय सेवा सुख पावै होय युगल चरण चेरी अहंकार ठूस ठूस भर र...

वेणुनाद में विस्मृति

*वेणु नाद में विस्मृति* प्रियतम ने पुनः वेणु नाद छेड़ दिया है।वेणु का एक एक रव एक ही नाम पुकार रहा जैसे प्यारी प्यारी ....... पया..........री.....। एक यही नाम तो रसराज के प्राणों में समाया हुआ है, ...

बाँवरी कबहुँ जग छुटकारा होय

बाँवरी कबहुँ जग छुटकारा होय विषय भोग परत अति गाढ़ी रही मूढ़े रोय रही मूढ़े रोय तोहे जग वीथिन अति प्यारी भजनहीन फिरै जगत माँहिं साँचो नाथ बिसारी भाय रहै तोहे षडरस मूढ़े कबहुँ हर...

बाँवरी रही तू अजहुँ रीति

बाँवरी रही तू अजहुँ रीती कोऊ विध न समझे बाँवरी कैसो निबहे प्रीति कितनो स्वास व्यर्थ गमाई मूढ़े उम्र गयी तेरौ बीती बिना नाम स्वासा खोय रहे कौन कारज सौं जीती हरिनाम कौ धन न तेर...

हरिहौं पतितन कौन सम्भारै

हरिहौं पतितन कौन सम्भारै जन्म जन्म की जड़ता भारी कौन विध नाम उचारै कीन्हीं न कबहुँ प्रीति साँची पुनि पुनि जन्म बिगारै हा हा खात पड़ीं बाँवरी नाथा बिलपत तेरे द्वारे तुमहीं न...

हरिहौं हम तोहे दिए बिसारी

हरिहौं हम तोहे दिये बिसारी लोभ जगै षडरस कौ गाढ़ा उर लालसा भारी जग वीथिन रैन दिवा डोले बुरी दसा हमारी कौन भाँति होवै छुटकारा उम्र बीत गई सारी हरिनाम न कबहुँ सुहावै बन्द राखी प...

हरिहौं जन्मन रहे बिताय

हरिहौं जन्मन रहै बिताय नाम न टेरी साँचो नाथा क्षण क्षण व्यर्थ गमाय नाम विहीना फिरत बाँवरी रही अबहुँ अकुलाय हा हा खात गिरत पड़त रहै अबहुँ बड़ौ पछताय साँची ठौर तुम्हीं हो नाथा ...

हरिहौं प्रीत न साँची लागी

हरिहौं प्रीति न साँची लागी हिय रह्यौ बाँवरी प्रेम विहीना जन्मन गये अभागी गाढ़ रस रह्यौ भोगन कौ बाँवरी न भव निद्रा त्यागी कौन भाँति हिय प्रेम रस उमगे जग सौं फिरै वैरागी जन्म...

हरिहौं बिगरी दसा हमारी

हरिहौं बिगरी दसा हमारी कौन विध होय भोगन छुटकारा अपनो बल सौं हारी तुम्हरौ बल ही साँचो नाथा भव सौं देयो मोहे निकारी साँचो प्रेम हिय माँहिं उपजै कीजौ मोहे प्रेम पुजारी जन्मन ...

मेरा दर्द

कुछ बिखरा सा कुछ टूटा सा तन्हा सा मुझमें रोता है तू मिलता है मुश्किल से जाने मुझसे क्यों खोता है तुझमें होकर भी प्यास रही न दूर हुई बस पास रही न पुकार सकी एक बार तुझे न भूल सकूँ ...

मोपै कृपा कीजौ

मोपै कृपा कीजौ मोरे नाथा हरिनाम रस सार बनै हरि हरि नाम जिव्हा सौं उच्चरुं हरिनाम श्रृंगार बनै भव सिन्धु डोलत रही नैया कौन विधि सौं पार बनै कृष्ण नाम की नोका चढ़कर भव सिन्धु स...

कुछ यूं

[23/05, 08:51] Amita: हम ढूंढने तो निकले तेरे निशां नहीं जानते थे क्या हशर होगा हर निशां को छूते ही साहिब मेरे तेरे ही इश्क़ को यूँ सज़दा होगा [23/05, 08:54] Amita: हमको कहाँ समझ रही कुछ यूं बेखुदी हुई तेरे इश्क़ क...

शिक्षा अष्टकम

*शिक्षा अष्टकम* कलिपावनावतार श्रीमन चैतन्य महाप्रभु जी ने अपनी सम्पूर्ण शिक्षा केवल आठ सूत्रों में पिरोकर शिक्षा अष्टकम इस विश्व को प्रदान किया है। साधक के लिए भजन की वि...

2

*शिक्षा अष्टकम*        *नाम संकीर्तन*       कलियुग पावन अवतार श्रीमन चैतन्य महाप्रभु जी ने कलियुग के ताप से त्रस्त जीवों के समस्त तापों का हरण करने के लिए हरिनाम पर ही बल दिया ...

यह जो घुलता सा

यह जो घुलता सा रहता है मुझमें मेरे साहिब यह इश्क़ तेरा ही है गुनगुनाता है इश्क़ के नगमे मुझमें मेरे साहिब यह इश्क़ तेरा ही है होती है जो बेखुदी मुझको मुझसे मेरे साहिब यह इश्क़ ते...

मुझमे उतरती है

मुझमें उतरती है मोहबत तेरी ही तो तुमको महसूस करती है मुझमें मेरा वजूद लौटकर ही मेरे जिंदा होने की वजह तलाशता है गर एहसास न होता तेरे इश्क़ का हमको तेरी ही मोहबत यह कैसे गवारा ...

हरिहौं कीजौ कौन उपाय

हरिहौं कीजौ कौन उपाय कौन विध नेह लगै मोय साँचो झूठी तोसौं नेह लगाय झूठो नेह लगाय बाँवरी कूकरी सम विष्ठा रही पाय कौन घड़ी भव निद्रा सौं जागै दियो साँचो नाथ भुलाय हा हा नाथ मेर...

हरिहौं माया लियो भरमाय

हरिहौं माया लियो भरमाय बाँवरी भई भव रोगी भारी आपहुँ लयो छुड़ाय आपहुँ लयो छुड़ाय मोय भव रोग जकडयो अति भारी फूलत फिरै बाँवरी पशु सम अपनो सगरौ जन्म बिगारी कौन घड़ी लगै भजन चटपटी ...

हरिहौं एक बार सुन लीजै

हरिहौं एकहुँ बार सुनि लीजै झूठी साँची पुकार कीन्हीं कान अबहुँ नाथा कीजै कौन कौ जाय पुकारूँ नाथा पतित राखे द्वारे तुमहीं साँचो पतितपावन हरि राखो भुजा पसारे नहीं मेरौ तुम ...

हरिहौं कीजौ मेरी रखवारी

हरिहौं कीजौ मेरी रखवारी झूठो साँचो तुम्हरौ होऊँ नाथा जन्मन दिये बिसारी अबहुँ न जागी भव निद्रा सौं आवे न भजन की बारी दसा बड़ौ बुरी मेरौ नाथा आपहुँ हाथ देयो कछु सँवारी मो अधमन ...

स्वामिनी नेकहुँ मेरी ओर निहार

स्वामिनी नेकहुँ मेरी ओर निहार तुम तो भोरी अतिकरुणामयी कोमल चित उदार कोटिन कोटि अपराध न देखो निज जन लयो उबार हा प्राणा ब्रजजीवनी सुंदरी अबहुँ न करौ विचार बाँवरी हिय प्रेम ...

बिगड़ी मेरी बनाना

बिगड़ी मेरी बनाना काम है सरकार आपका पतितन की ही आस है यह दरबार आपका करुणामयी किशोरी कौन तुमसा है कृपाला भोरी अति सुकुमारी राधे कोमल चित विशाला अधमों को निज शरण रखना है उपकार ...

कोटिन कोटि अपराध

कोटिन कोटि अपराध जन्म सौं तुम न एक बिचारी पतितपावन नाम तिहारो राधे पतितन की रखवारी छांड आस बिस्वास ठौर सब स्वामिनी तोहे पुकारी प्राणों की निज प्राण किशोरी देखो बिगरी दशा ...

हरिदास नित हरि को दास

हरिदास नित हरि कौ दासा जिन हिय बाढ़ै नित प्रेम पिपासा देह की सुधि न राखै एकै राखै आसा हरि नाम क्षनहु न बिसरै जिते चालै स्वासा बाँवरी मूढ़ा अति भारी न जाने प्रेम कौ भासा करुणाक...

मोपै कृपा कीजौ

मोपै कृपा करौ हरिदासा हरिनाम क्षण क्षण चालै जितो चले स्वासा जितो चले स्वासा हिय नाम रस उमगावै कोऊ बल न नाथा बाँवरी किस विध रस पावै नाथा आपहुँ करौ कृपा बाँवरी निर्धन अति भार...

कबहुँ हरिनाम होय मेरौ निधि

कबहुँ हरिनाम होय मेरौ निधि निर्धन अति कंगाल भजन सौं बाँवरी जानैं न कोऊ विधि आपहुँ आप जनावो नाथा निर्बल कौ कोऊ बल न होय हरि नाम नित नित उच्चरै कबहुँ बाँवरी भुजा उठाय दोय जेई ...

कबहुँ हरिनाम लगे मोहे नीको

कबहुँ हरिनाम लगै मोहे नीको भजन स्वाद लगै जिव्हा कौ ऐसो सकल स्वाद होय फीको स्वास स्वास नाम रस आवै ऐसो कृपा नाथा अबहुँ होय क्षणहुँ न आपनो नाथ बिसारूं  ऐसी बनत बनावो कोय मेरौ ब...

नाथा दीजौ हरिनाम कौ दान

नाथा दीजौ हरिनाम कौ दान नाम ही बनै सकल धन मेरौ क्षण क्षण कौ होय गान जेई क्षण बिझराऊं नाथा आपनो सोई क्षण देह तजै प्रान भजन की चटपटी दीजौ ऐसी तड़पत रहूँ जल बिन मीन समान हा हा नाथा ...

हा हा किशोरी

हा हा किशोरी मोहे कब अपनाओगी करुणामयी स्वामिनी मेरी कब मोहे टेर बुलाओगी बैठी रहूँ द्वार तिहारे किशोरी कभी तो बाहर आओगी बाँवरी कह कर मोहे स्वामिनी करुणा रस बरसाओगी राह तक...

सुधि लीजो

सुधि लीजो मेरी नवल किशोरी करुणा की तुम खान अति भोरी सुधि लीजो...... मधुर मधुर है नाम श्रीराधा मिट जावै सकल भव बाधा दासी को निज सेवा दीजौ सुनो प्यारी राधिके निहोरी सुधि लीजो...... कोऊ ...

हा किशोरी

[08/05, 16:22] गौरांग कृपा: हा प्यारी मिलन चटपटी देयो लगाय ऐसो होय दसा कबहुँ हिय की कछु और न भाय मेरौ कोऊ जप तप न किशोरी करुणामयी तेरौ सुभाय एहि जानत बाँवरी दासी तिहारी राधे तोसौं ही आस ल...

विरहामृत

*विरहामृत* विरह प्रेम की *परमोच्च* अवस्था है। ऐसी अवस्था जिसमें विरह का ताप स्वयम तक को भस्मीभूत कर देता है। जिसमें स्वयम की भी विस्मृति है , कुछ शेष है तो बस प्रेमास्पद। विरह ...