हरिहौं कबहुँ प्रीत लगाती साँची नाम विहीना फिरै बाँवरी व्यर्थ ज्ञान रही बाँची व्यर्थ करै बकवाद क्षण क्षण कौ हरिप्रेम न राँची साँचो होती प्रीत कबहुँ तेरी रही काँची की का...
बाँवरी पर उपदेश कुशल बहुतेरी पतित अधम जन्म जन्म की कबहुँ हरिनाम न टेरी कौन विध तेरौ होय छुटकारा कटे जन्मन कि फेरी कौन समय सेवा सुख पावै होय युगल चरण चेरी अहंकार ठूस ठूस भर र...
*वेणु नाद में विस्मृति* प्रियतम ने पुनः वेणु नाद छेड़ दिया है।वेणु का एक एक रव एक ही नाम पुकार रहा जैसे प्यारी प्यारी ....... पया..........री.....। एक यही नाम तो रसराज के प्राणों में समाया हुआ है, ...
बाँवरी रही तू अजहुँ रीती कोऊ विध न समझे बाँवरी कैसो निबहे प्रीति कितनो स्वास व्यर्थ गमाई मूढ़े उम्र गयी तेरौ बीती बिना नाम स्वासा खोय रहे कौन कारज सौं जीती हरिनाम कौ धन न तेर...
हरिहौं पतितन कौन सम्भारै जन्म जन्म की जड़ता भारी कौन विध नाम उचारै कीन्हीं न कबहुँ प्रीति साँची पुनि पुनि जन्म बिगारै हा हा खात पड़ीं बाँवरी नाथा बिलपत तेरे द्वारे तुमहीं न...
हरिहौं जन्मन रहै बिताय नाम न टेरी साँचो नाथा क्षण क्षण व्यर्थ गमाय नाम विहीना फिरत बाँवरी रही अबहुँ अकुलाय हा हा खात गिरत पड़त रहै अबहुँ बड़ौ पछताय साँची ठौर तुम्हीं हो नाथा ...
हरिहौं प्रीति न साँची लागी हिय रह्यौ बाँवरी प्रेम विहीना जन्मन गये अभागी गाढ़ रस रह्यौ भोगन कौ बाँवरी न भव निद्रा त्यागी कौन भाँति हिय प्रेम रस उमगे जग सौं फिरै वैरागी जन्म...
कुछ बिखरा सा कुछ टूटा सा तन्हा सा मुझमें रोता है तू मिलता है मुश्किल से जाने मुझसे क्यों खोता है तुझमें होकर भी प्यास रही न दूर हुई बस पास रही न पुकार सकी एक बार तुझे न भूल सकूँ ...
[23/05, 08:51] Amita: हम ढूंढने तो निकले तेरे निशां नहीं जानते थे क्या हशर होगा हर निशां को छूते ही साहिब मेरे तेरे ही इश्क़ को यूँ सज़दा होगा [23/05, 08:54] Amita: हमको कहाँ समझ रही कुछ यूं बेखुदी हुई तेरे इश्क़ क...
*शिक्षा अष्टकम* कलिपावनावतार श्रीमन चैतन्य महाप्रभु जी ने अपनी सम्पूर्ण शिक्षा केवल आठ सूत्रों में पिरोकर शिक्षा अष्टकम इस विश्व को प्रदान किया है। साधक के लिए भजन की वि...
*शिक्षा अष्टकम* *नाम संकीर्तन* कलियुग पावन अवतार श्रीमन चैतन्य महाप्रभु जी ने कलियुग के ताप से त्रस्त जीवों के समस्त तापों का हरण करने के लिए हरिनाम पर ही बल दिया ...
यह जो घुलता सा रहता है मुझमें मेरे साहिब यह इश्क़ तेरा ही है गुनगुनाता है इश्क़ के नगमे मुझमें मेरे साहिब यह इश्क़ तेरा ही है होती है जो बेखुदी मुझको मुझसे मेरे साहिब यह इश्क़ ते...
मुझमें उतरती है मोहबत तेरी ही तो तुमको महसूस करती है मुझमें मेरा वजूद लौटकर ही मेरे जिंदा होने की वजह तलाशता है गर एहसास न होता तेरे इश्क़ का हमको तेरी ही मोहबत यह कैसे गवारा ...
स्वामिनी नेकहुँ मेरी ओर निहार तुम तो भोरी अतिकरुणामयी कोमल चित उदार कोटिन कोटि अपराध न देखो निज जन लयो उबार हा प्राणा ब्रजजीवनी सुंदरी अबहुँ न करौ विचार बाँवरी हिय प्रेम ...
बिगड़ी मेरी बनाना काम है सरकार आपका पतितन की ही आस है यह दरबार आपका करुणामयी किशोरी कौन तुमसा है कृपाला भोरी अति सुकुमारी राधे कोमल चित विशाला अधमों को निज शरण रखना है उपकार ...
कोटिन कोटि अपराध जन्म सौं तुम न एक बिचारी पतितपावन नाम तिहारो राधे पतितन की रखवारी छांड आस बिस्वास ठौर सब स्वामिनी तोहे पुकारी प्राणों की निज प्राण किशोरी देखो बिगरी दशा ...
हरिदास नित हरि कौ दासा जिन हिय बाढ़ै नित प्रेम पिपासा देह की सुधि न राखै एकै राखै आसा हरि नाम क्षनहु न बिसरै जिते चालै स्वासा बाँवरी मूढ़ा अति भारी न जाने प्रेम कौ भासा करुणाक...
हा हा किशोरी मोहे कब अपनाओगी करुणामयी स्वामिनी मेरी कब मोहे टेर बुलाओगी बैठी रहूँ द्वार तिहारे किशोरी कभी तो बाहर आओगी बाँवरी कह कर मोहे स्वामिनी करुणा रस बरसाओगी राह तक...
सुधि लीजो मेरी नवल किशोरी करुणा की तुम खान अति भोरी सुधि लीजो...... मधुर मधुर है नाम श्रीराधा मिट जावै सकल भव बाधा दासी को निज सेवा दीजौ सुनो प्यारी राधिके निहोरी सुधि लीजो...... कोऊ ...
*विरहामृत* विरह प्रेम की *परमोच्च* अवस्था है। ऐसी अवस्था जिसमें विरह का ताप स्वयम तक को भस्मीभूत कर देता है। जिसमें स्वयम की भी विस्मृति है , कुछ शेष है तो बस प्रेमास्पद। विरह ...