हरिहौं फतिहैन काहे

हरिहौं फटिहै न काहे छाती
साँचो नाथ बिसारी फिरै आपनो षड रस फिरै पाती
धिक धिक जीवन तेरौ होय बाँवरी नेकहुँ नाय लजाती
पसु सम सुधि खावन पीवन की न भजन की बात सुहाती
छांड अमृत नाम हरि कौ फिरै जगति की विष्ठा पाती
कूकरी सम डोलत रही पुनि पुनि कबहुँ हरिनाम न गाती

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून