मैं नहीं जाना

मैं नाँहिं जाना नाथ कछु मोरे तुम सौं आस लगाई
झूठी साँची प्रीति मोरे नाथा बाँवरी कहे सकुचाई
हौं सकुचाई नाथ देख अवगुण अपनो अपनी देख ढिठाई
कौन सौं जिव्हा गुणगान करूँ नाथा सागर कैसो समाई
नाथा तुम सागर मैं बुँदिया मोहे कीजौ न दूर दुराई
जन्मन पड़ी भव सागर गहरे बाँवरी अबहुँ अकुलाई

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