हम धरती कौ बोझा
हरिहौं हम धरती कौ बोझा
कोऊ बात न बनत भजन की जन्म की भूलै सोझा
जन्म की भूली सोझा बाँवरी बिरथा कीन्हीं सब स्वासा
कौन विध हरि सेवा दरसन छांड दीजौ बाँवरी एहै आसा
अब निरखिहौ कौन क्षणहुँ ते जेह देह सौं होय छुटकारा
बाँवरी मूढ़ा काहे जीवत रही बाढ़ै अति भोग पसारा
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