बिरथा जन्म

बाँवरी बिरथा जन्म गमायो
मुख धर राखी जिव्हा चाण्डालिनी कबहुँ हरिनाम न गायो
बात भजन की न लागे नीकी तोहे षड रस सदा सुहायो
काहे बोझा ढोवे स्वासा बाँवरी तोहे बिरथा जननी जायो
कबहुँ शरमात न खोटे करमन ते सूकरी सम विष्ठा पायो
हेरत हेरत जग वीथिन बाँवरी रही स्वासा स्वास गमायो

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