आत्मा का नृत्य
*आत्मा का नृत्य*
श्रीहरिनाम एक चिन्मय वस्तु है। भूल से इसे जड़ वस्तु समझ लिया जाता है जिससे साधक की शुद्ध हरिनाम में रति नहीं हो पाती है। जड़ और चेतन में भेद समझने के लिए इतना अंतर पर्याप्त है कि रोटी रोटी रोटी ...पुकारने से रोटी नहीं मिल रही पर हरि हरि हरि......पुकारने पर हरि मिले ही हुए हैं। हरि कृपा से ही यह चिन्मय शब्द जिव्हा पर नृत्य कर रहे हैं। जिव्हा पर श्रीहरिनाम प्रकट क्यों नहीं होता। क्या श्रीप्रभु किसी पर विशेष कृपा करते हैं जो उनको हरिनाम में रुचि होती है।
श्रीप्रभु ने सब पर अतिशय कृपा कर रखी है। श्रीहरिनाम में रुचि न होने का कारण है जिव्हा को श्रीहरिनाम की अपेक्षा अन्य जडिय वस्तुओं में रसानुभूति हो रही है। जिससे जिव्हा को अपने परम रस का लोभ नहीं हो रहा, परन्तु सात्विक एवं प्रभु को अर्पित किया हुआ प्रसाद स्वरूपः अन्न श्रीहरिनाम में रुचि उतपन्न करता है। श्रीप्रभु ने कलिकाल में केवल नाम कीर्तन , नाम स्मरण पर ही बल दिया है। श्रीप्रभु ने जीव की दुर्गति से निकलने का ऐसा अमोघ मन्त्र प्रदान किया है, जिसे सहजता से कहीं भी , किसी भी परिस्थिति में लिया जा सकता है। श्रीहरिनाम ऐसा धन है जिसकी क्षण क्षण की वृद्धि इसका चिन्मय स्वरूपः प्रकट करने में सक्षम है। श्रीहरिनाम करते करते स्वतः ही जीव की इसमे रुचि हो जाती है।
श्रीप्रभु की जीव को सबसे बड़ी कोई देन है तो वह श्रीहरिनाम करने की समर्थता है। इस नामानन्द को केवल मानव योनि में ही लिया जा सकता है इसलिए बड़े बड़े देवता भी देव पद छोड़ श्रीहरिनाम सुनने को लालायित रहते हैं। श्रीहरिनाम कोई सामान्य प्राप्ति नहीं है अपितु श्रीप्रभु ही नाम रूप में जिव्हा पर अवतरित हुए हैं , हृदय में नृत्य कर रहे हैं। इस धन को संचय करने का लोभ ही मानव जीवन की सार्थकता है। जो प्राप्ति युगों युगों में यज्ञ, दान, तप, तीर्थ , ज्ञान आदि से नहीं हो सकती वह कलिकाल में श्रीहरिनाम द्वारा सम्भव है।
श्रीहरिनाम का वह आनंद, वह रस , वह उन्माद श्रीमहामन्त्र स्वरूपः में श्रीमनचैतन्य देव ने कलिकाल की औषधि के रूप में दिया है जिसके सेवन से कलिकाल के समस्त तापों से निवृति सम्भव है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
यह *श्रीमहामन्त्र* सभी मंत्रों का सार स्वरूपः है जिसके गायन से स्वतः ही सभी मंत्रों की सिद्धि हो जाती है। एक बार इस मंत्र को सुनते हुए या उच्चारण करते हुए कलि पावनावतार श्रीमन चैतन्य देव की कृपा को अनुभव कीजिये। हरे ......कृष्णा......हरे.......कृष्णा.....कृष्णा......कृष्णा......हरे .....हरे......हरे......राम....हरे.....राम......राम.......राम.....हरे.....हरे.....
यह केवल शब्द न होकर श्रीमनचैतन्य देव का चिन्मय स्वरूपः है जिसमे वह आपकी आत्मा को नाम आनन्द प्रदान करते हुए दिवस रस प्रदान कर रहे हैं। एक एक शब्द मात्र शब्द नहीं आपकी आत्मा का नृत्य है, श्रीप्रभु के नामामृत सँग, श्रीप्रभु के साथ वास्तविक नृत्य।
क्षण क्षण जपते रहिये। श्री हरिनाम प्रभु की जय हो। जय जय श्रीगौरहरि
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