जन्म अकारण
हरिहौं जन्म अकारण कीन्हा
भजन विहीन जग वीथिन फिरिहैं एकै नाम न लीन्हा
भजन विहीन की गति नाँहिं षड रस लोभ न जावै
साँचो लोभ जो होतौ भजन कौ स्वास न विरथा आवै
मूढ़ा बाँवरी फिरै नाथ बिसारी जन्मन जन्म गमाई
कौन विध हिय प्रीत उमगै साँची नाम न साँचो गाई
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