कौन विध भजन

हरिहौं कौन विध भजन मोहे भावै
कीजौ छुटकारा भव बन्धन सौं बाँवरी टेर बुलावै
जन्म जन्म दियो सुधि भुलाई कौन होय साँचो धन
भव निद्रा अति गाढ़ी नाथा आपहुँ राखो निज जन
जैसो कैसो तेरौ जन नाथा अबहुँ बाँवरी सुधि लीजौ
भव कीच परी तलफत हूँ नाथा आपहुँ रक्षा कीजौ

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