श्याम तुम श्यामा तुम
श्यामा तुम श्याम तुम
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कान्हा आज वन में सखाओं के संग गौ चारण को गए हैँ। गोप ग्वालों के साथ ऐसा आनन्द हो रहा है और गईयां बछड़ों संग तो खेलकूद का आनन्द ही कुछ और है। इसी बहाने श्यामसुन्दर घर से बाहर निकले हैं। प्रकृति भी उन्हें स्वयम् संग पा रही है। एक एक गाय बछड़े को पकड़ पकड़ सहला रहे हैं जैसे हर कोई उनका स्पर्श पाने को व्याकुल हो। इस आनन्द का वर्णन शब्दों में कहाँ होगा। वन में गोप ग्वालों संग बैठे हैँ।
कुछ समय बाद कान्हा अकेले शांत से होकर बैठ गए हैँ। ना जाने किन स्मृतियों में खोये हैं। तभी एक गोपी आकर कान्हा को पूछती है कान्हा तुम अकेले हो यहां । राधा कहाँ है ? कान्हा एकदम से बोल पड़ते हैं तुम। तुम राधा । गोपी सकपका जाती है अभी कान्हा को क्या उत्तर दे उसकी समझ से बाहर हो जाता है। वहां से सीधी दौड़ राधा जू की ओर लगाती है। राधा राधा कहाँ हो तुम ? राधा जू बाहर की ओर देखकर कहती हैँ क्या हुआ कान्हा? कान्हा ? अभी ये गोपी और चकराने लगती है। उधर तो कान्हा इसे राधा समझ रहे हैं और इधर राधा उन्हें कान्हा कह रही है। अब सखी सोचने लगती है ये मेरे संग क्या हो रहा है? कुछ क्षण रुककर पुनः कान्हा की ओर चलती है। देखूं तो सही क्या मुझे ही ये आभास हो रहा है या इन दोनों की स्थिति ही विचित्र है। पुनः कान्हा के पास। वन में पहुंचती है तो कान्हा कहते हैं बाँवरी मेरी पूरी बात तो सुनी न है। पहले ही भाज गयी तू। कबते कह रहा था तुम राधा के पास जाओ और कहो मुझसे मिले शीघ्र ही। सखी को अपनी स्थिति ही विचित्र लगती है। ये क्या कभी मुझे कुछ सुनता है कभी कुछ। पूरी बात तो सुनी न मैंने। अब पुनः राधा की ओर लौटती है।
बाँवरी कहाँ चली गयी थी तुम मैं कबते पूछ रही थी कान्हा ने क्या कहा है बोलो। अब तो बाँवरी सच में ही बाँवरी हुई जा रही। अब अपनी स्थिति किसे कहे। सारी व्यथा श्री राधा जू से कहती है। राधा उसकी पूरी बात सुन बहुत जोर जोर से हँसती है। राधा जू को खिलखिलाते देख अभी ये बाँवरी गोपी भी प्रसन्न हो गयी। क्योंकि स्वामिनी राधा ही तो इसके प्राण हैं। उन्हें किसी भी बात का आनन्द हो ये भी सौभाग्य की बात है।
जय जय श्री राधे
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