मैं ओर तुम
*तुम और मैं*
कुछ निखर कुछ बिखर मैं यूँ तुझमें खो जाऊँ
तुम मैं हो या मैं तुम हूँ कोई भी फर्क न पाऊँ
संवरना है महकना है महक मुझमें जो तेरी है
खिली हुई धूप के माफ़िक सर्द सुबह बिखेरी है
साँसे यूँ महकती सी नशा से घुल रहा जैसे
लफ्ज़ मेरे ही अब गुम हैं कहूँ तुमसे बता कैसे
मदहोशी ये इश्क़ की क्या मुझमें मेरी आई है
वफ़ाएँ हैं ये तेरी ही जो बादल बनके छाई हैं
बता तुझको कहाँ ढूंढूं तेरी धड़कन मेरे दिल में
तेरे ही सँग है जीना हो तन्हाई या महफ़िल में
जुदा होने को भी तो दो का होना जरूरी है
तुम मुझमें जी रहे ऐसे नज़र आती न दूरी है
मेरा मौला मेरे साहिब यूँ ही मुझको खुमारी दो
तेरी धड़कन ही हो जाऊँ मुझे वो बेकरारी दो
लहू नहीं है रगों में अब तेरा ही इश्क़ बहता है
मेरा मुझमें न कुछ बाकी कहानी तेरी कहता है
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