आपहुँ राख

हरिहौं आपहुँ राख रखावो
लौटत फिरत सूकरी सम कीच माँहिं पकरो आय बचावो
बुद्धिहीन बलहीन अधमा बाँवरी पतिता जन्म जन्म की
अधम उद्धारण नाम होय नाथा राखो आज अधम की
ऐसी बिगरी दसा मेरौ नाथा देखत बने न अबहुँ
अबके नाथ न राखे पतित को बात बनै फिर कबहुँ

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