नन्दलाल गोपाल लीला
नन्दलाल गोपाल*
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कान्हा बहुत नटखट होते जा रहे हैँ। गोपियों से छेड़ा छाड़ी, उनकी चोटियां बांधना,बछिया खोल देनी ,मटकी फोड़नी ,माखन चुराना तो जैसे नित्य क्रम हो चुका इनका । सभी गोपियाँ सोचती हैँ इस नटवर लाल को किसी दिन अपनी पकड़ में लेकर सारी शैतानियों का खूब मज़ा चखाया जावे।
परन्तु ये चतुर शिरोमणि भी कुछ कम तो नहीं हैँ। गोपियों के हृदय की भाँप चुके हैँ कि ये अवशय ही कुछ करने की ताक में हैं। अभी ये शांत हो चुके हैं। परन्तु गोपियों के हृदय में शांति तो तभी होगी जब ये अपने प्राण प्रिय नटवर से कुछ प्रेम भरी छेड़ छाड़ नहीं कर लें। अभी ये हम सबकी पकड़ में तो आने वाले नहीं हैँ। राधा ही हमारी सहायता कर सकती है।
सभी गोपियाँ राधा को कहती हैँ। प्यारी जू तुम इन नटवर को बातों में लगाकर एक तरफ लेकर आओ । आज हम सब खुद विनोद करेंगीं इनसे। इन प्रेम स्वरूप् परमानन्द स्वरूप् नटवर किशोर का स्वाभाव ही प्रेम पाना और प्रेम देना है। प्रेम भाव से तो ये बंधने को सदा सर्वदा लालायित रहते हैँ। राधा कान्हा को बुलाकर मित्र मण्डली से दूर एक ओर ले जाती है जहाँ गोपियाँ इन्हें घेर लेती हैँ। नटवर किशोर आज हम तुम्हारी शरारतों का खूब मज़ा देंगें तुम्हें। कितने दिन से तुमने उत्पात मचा रखा है। आज हम सब तुम्हें छोड़ने वाली नहीं हैँ। कान्हा उन्हें देखकर भोली सी सूरत बना लेते हैँ जैसे उन्होंने कभी कोई उत्पात ही नहीं किया हो। अच्छा गोपियो बोलो मैं तुम्हारी प्रसन्नता के लिए क्या करूँ। कान्हा आज तुम्हें हमारे इशारों पर नाचना होगा। जैसा हम निर्देश दें तुम्हें हमारे लिए नृत्य करना होगा।
कान्हा तो प्रेम भरी इस छेड़ छाड़ से स्वयम् भी आनंदित होते और सबको आनन्द देते हैँ। हाँ तो बोलो मुझे क्या करना होगा। ललिता गोपी को अत्यधिक रोष हुआ है। वो आगे बढ़कर कान्हा को कहती है कान्हा जब मैं कहूँ नन्दलाल तो तुम बाईं ओर ठुमका लगाओगे जब मैं कहूँ गोपाल तो तुम दाईं और ठुमके लगाओगे। सभी गोपियाँ और राधा खिलखिलाकर हँसती हैं। भोली सी सूरत वाले कान्हा आज मित्र मण्डली से दूर गोपियों के प्रेम में विवश हुए बंधे पड़े हैं।
नृत्य आरम्भ होता है। नन्दलाल गोपाल नन्दलाल गोपाल .........ललिता जू आरम्भ करती हैँ और कान्हा बाईं दाईं ओर ठुमके लगाते हैँ। सहसा ही ललिता जू के हृदय में विनोद जागता है। वो बोलने लगती हैं नन्दलाल नन्दलाल नन्दलाल नन्दलाल ........तथा कान्हा एक और ही ठुमका लगाते हैँ। ओ ललिता ठीक से बोल न। देख मेरी पतली सी नाज़ुक कमर बल खा रही है। कान्हा तुम तो पहले से ही टेढ़े हो अभी तो तुमको सीधा करना है। सभी गोपियाँ जोर जोर से हँसती हैँ।
पुनः नृत्य आरम्भ होता है। नन्दलाल गोपाल नन्दलाल गोपाल........तथा कान्हा बाईं दाईं ओर ठुमके लगाते हैँ। पुनः ललिता जू विनोद करने लगती हैँ। आखिर इतने दिन इस उत्पाती का उत्पात सहा है। अभी मन कहाँ भरा है ललिता जू कहती है गोपाल गोपाल गोपाल गोपाल ......... । अरी गोपी तू फिर से शुरू हो गयी । अभी तो मेरी कमर पूरी टेढ़ी हो गयी है। टेढ़ी कहाँ हुई कान्हा ये तो जो पहले टेढ़ी हुई उसका टेढ़ा पन भी नहीं गया। सभी गोपियाँ और राधा जोर जोर से हँसती हैं। कान्हा जू भोला सा मुख बनाकर नृत्य करते रहते हैँ। इन प्रेम आतुर नटवर का कार्य ही तो प्रेम देना और प्रेम लेना है। जिसके लिए ये कैसी कैसी लीला रचते रहते हैँ।
नटवर किशोर की जय हो
नन्दलाल गोपाल की जय हो
जय जय श्री राधे
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