कैसो कटे भव फंद
हरिहौं कैसो कटे भव फन्द
बाँवरी क्षणहुँ न नाम उचारै बुद्धिहीन मति मन्द
बुद्धिहीन मति मन्द बाँवरी कबहुँ नाय लजात
बिगरी दिन दिन दसा नाथा मेरी बनै न अबहुँ बनात
कोऊ बल न मेरौ नाथा कौन विध होय भोगन छुटकारा
प्रीत की रीति न समझै बाँवरी एकै नाथा अबहुँ तेरौ सहारा
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