राधामयी कान्हा

धारण और कान्हा का राधमयी होना
~~~~~~~~~~~~~~~|

श्री राधा आज कान्हा जू से मान कर बैठी हैँ । कान्हा जू की किसी बात से वो मान धारण कर लेती हैँ । बहुत प्रयत्न करने पर भी कान्हा से बात नहीं करतीं। वन में जा एक वृक्ष के नीचे मौन हो बैठ जाते हैँ । नैनों से अश्रु प्रवाह होने लगता है। मन में केवल प्रियतमा राधा की ही स्मृति। हा राधे !हा राधे !यही पीड़ा उनको व्याकुल किये है। बांसुरी ,पीताम्बर सब अस्त व्यस्त पड़े। सखा सब किधर गए कुछ याद नहीं । इस विरह की स्तिथि में अपनी प्रियतमा के बिना और अच्छा भी क्या लग सकता है। 
    
       कान्हा कई बार अपनी प्रियतमा को अकेली छोड़ आँखों से ओझल हो जाते हैं। उस समय श्री प्रिया जू की क्या स्थिति रही होगी। आज कुछ कुछ उसी स्थिति में कान्हा वन में वृक्ष की ओट में बैठे हैँ ।

      हा राधे ! हा राधे !पुनः पुनः प्रलाप करने लगते। उनको इस अवस्था में देख सखियाँ घबरा जाती हैँ ।कुछ देर बाद एकदम मौन हो जाते है। बाहर की स्थिति की उन्हें कोई स्मृति नहीं ।सखियाँ सोचती हैं कि इस स्थिति से राधा जू ही उनको बाहर ला सकती हैं । वे श्री जू को बुलाने जाती हैँ।

      कुछ क्षण बाद सखियाँ श्री जू के साथ लौटती हैं । श्री जू को सब दिखा जब सम्बोधन करती हैं राधे ! तुरंत से कान्हा बोल उठे हाँ । उनकी इस स्थिति को श्री दू देख आश्चर्य चकित होती हैँ । सखी पुनः कहती हैँ राधे ! पुनः कान्हा उत्तर देते हैं । इस समय वो स्वयम् को राधा मान बैठे हैं । राधा के विरह में विलाप करते करते राधा के मन वाले हो गए और स्वयम् को राधा मान चुके।

    श्री जू उनको देख प्रसन्न होती हैं और पुकारती हैं कान्हा ! कान्हा !......। आहा !पुनः पुकारो ये कितना मधुर नाम है। आहा ! कान्हा ! सखी पुनः पुकारो । श्री जू की ऐसी स्थिति हो जाती है कि माँ तो सब छूट जाता उनका । वे तो प्रियतम की इस दशा से आनन्दित हो रहीं । पुनः कहो सखी इस मधुर नाम को । श्री जू हँसती हैं और पुनः पुनः कहती हैं । जैसे ही उनका कर मोहन को स्पर्श करता है । कान्हा की चेतना पुनः लौटती है और अपने सम्मुख प्यारी जू को देख आनन्द से भर जाते हैँ। आहा !युगल की हर क्रिया ही परस्पर आनन्द बढ़ाने हेतु है । जय हो इस अद्भुत दिव्य प्रेम की । 
          जय जय श्री राधे

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून