प्रेम
न
सच मे
नहीं हुआ
मुझे कहाँ हुआ प्रेम
सुना है प्रेम पागलपन होता है
हमारी तो समझदारी की दीवारें
बहुत बहुत ऊँची हैं
सच में
और सुना
प्रेम झुकना सिखाता है
तृण से भी नीच बना देता
हम क्या समझें
क्या जानें
प्रेम क्या है
सच में
यूँ तो हम बहुत कुछ जानते हैं
बस स्वयम को ही न जान सके
हमारे अहंकार के महल
बहुत ऊंचे ऊंचे बने हुए
चाहें भी तो
इसकी दीवार फांद नहीं सकते हम
हम चाहें भी क्यों
खुश हैं न हम
अपने इस महल में
तुमको भुलाकर
हाँ
सच
तुमको भुलाकर
Comments
Post a Comment