हरिहौं अबहुँ न देयो कोऊ स्वासा

हरिहौं अबहुँ न देयो कोऊ स्वासा
नाम भजन की चटपटी न लागी साँची नाय पिपासा
जन्मन जन्म गये बहुतेरे बाँवरी हाथन लगी निरासा
न उपजै हिय प्रेम रस कबहुँ न  समझै प्रेम की भासा
बाँवरी तू हरिदास न बनिहैं रही सदा माया की दासा
कौन विध मुख सामने लाऊँ हरिहौं कौन विध लगाऊँ आसा

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