तुम्हरो कियो

तुम्हरौ कियो सब मंगल नाथा
भव सिन्धु माँहिं गिरत पड़त हूँ आपहुँ पकरौ हाथा
दुख सुख सगरौ खेल रचावै आपहुँ रहै मोरे साथा
आपहुँ जिव्हा बैठत नाथ मोरे अपनी सुनावो गाथा
निर्बल अति अधम बाँवरी हारी सकल विधि सौं नाथा
रहूँ अकुलाय तुम्हरे दरस बिनहुँ क्षण क्षण कीजौ साथा

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