इश्क़ का फ़साना
क्यों इतना पिला देते हो
की मदहोश होती जा रही हूँ
देखो कसूर है तेरी नज़र का
बदनाम मैं होती जा रही हूँ
बेकाबू हुआ हुआ दिल अब मेरा
संभालो तेरे पास ही आ रहा है
जूनून ए मोहबत इस कदर बढ़ रहा है
दिलो में कैसा तूफान ला रहा है
बेकरारी की कोई हद तो होगी
क्या बांध पाओगे मुझको हदों में
तेरी दीवानगी से पाकीज़ नही कुछ
मंदिर में जाओ चाहे मस्जिदों में
तू रूह का सौदागर है मैं बिक गयी
तेरी चौखट पे सब हसरतें मिट गयी
ओ मालिक कबूल हो मेरा सलाम
पाये बेचैन रूह भी कुछ तो आराम
कहां लिख सकूँ इश्क़ का फसाना
तेरी नज़रो का साहिब दीवाना जमाना
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