राधाकृष्ण
सोच रही राधिका प्यारी
अबहु यही खड़े बनवारी
कहा खो गए प्रीतम्प्यारे
निसदिन बरसे नैन हमारे
अभी गयी थी यमुना किनारे
लेके मटकिया पानी वारी
राह रोक के घेर लियो
ऐसो नटखट कृष्ण मुरारी
अंसुअन की झड़ी लगाय राधा
कबहु आवे कृष्ण मुरारी
बिन प्रीतम कैसो कटे दिन
हाय मैं सब सुध बुध हारी
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