हरि कैसे मिले
मन में नही तीव्र उत्कण्ठा
केवल जग को वास
थोड़े भजन से हुये संतुष्ट
हर पल जगत विलास
भीतर की कब मैं हटे
ऐसा करे प्रयास
प्रभु कब हमसे दूर है
अपने भीतर वास
उनकी कृपा जब हुई तो
मुख से निकले नाम
जीव दुष्ट करे भजन
नही होय निष्काम
मुख से तेरा नाम लिया
स्वयं प्रभु ने याद किया
देह भाव मिथ्या सब त्याग
हिय में होय भगवत अनुराग
मेरी बहुत जरूरत है
कथित मेरे संसार को
माया का कब पर्दा हटे
जानू तेरे प्यार को
थोड़े भजन से तक गए
संसार का हर पल भान
उनकी कृपा दृष्टि रहे
भजन ही पूर्ण भगवान
प्रेम में मैं का त्याग हो
प्रभु चरण अनुराग हो
सेवा हो संसार की
ऐसे सबके भाग हों
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