क्या करिये
क्या करिये इन नैनन सो
युगल छवि को ध्यान ना होये
या ते बिन नैनन ही रहिये
काहे इनमें जगत पिरोये
क्या करिये इन हाथन को
कबहुँ कछु सेवा न होये
या ते बिन हाथन ही भलो
दो टूक जगत ते मांगन होय
क्या करिये इन पावन ते
कबहुँ धाम जाना न होये
या ते बिन पावन ही भलो
बैसाखी हरिनाम की होय
क्या करिये मानुष तन को
युगल दर्श की तृषा न होय
बाँवरी तू तो जन्म गवाये
चिंतन हर पल जगत का होय
Comments
Post a Comment