तेरी होने की
क्या मै वृक्ष हूँ
प्रतीक्षा में हूँ
कब फूल खिलेंगे
कब फल लगेंगे
कब बसंत आएगी
कब खुशबू उड़ेगी
रोम रोम सुवासित होगा
नही नही
मैं वृक्ष नहीँ
मैं तो चेतना
बिछड़ी हुई आत्मा
अब अलग हुई
क्यों अलग हुई
नही जानती
नही जानती
कितने रूप बदले
कितने रंग बदले
कितने देश बदले
कितने भेष बदले
बिछड़ी रही तुझसे
बेचैन रही हरपल
तेरी याद न आई
तू नही भूला
कभी नही भूला
कितनी बार रूप बदला
मानव का तन मिला
पंख निकल आये
प्रेम हुआ
तुझसे नही
तुझसे नही
धन से
रूप से
गुण से
कभी स्नेह
कभी श्रद्धा
कभी बड़पन हुआ
कभी चढ़ाई की
बेचैन रही
चैन नही
फिर लगा
तूने याद किया
तुम भूले न थे
पर लगा
तूने याद किया
फिर तेरी याद आई
मुझे तेरी याद आई
तूने खुद थामा
मेरा हाथ पकड़ा
निकाल लिया
खींच लिया
जंजाल से
छुड़ा लिया
तेरी याद आई
तेरे चाहने से
कुछ ऐसा हुआ
भीतर उतरी
ऐसी उतरी
ऐसी क्या कहू
अब भरते जा रहे
भीतर में ही
फिर भी पुकार
फिर भी तड़प
तुझसे मिलने की
तेरी होने की
तुझमे बसने की
तुझमे खोने की
अब होश नही
बस बेखुदी सी
तेरी होने की
तेरी होने की
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