कोई नही गोपाल तुम बिन
कोई नही गोपाल मेरा तुम बिन
छोड़ तेरा दर जाऊँ कहाँ
किसको सुनाऊँ विरह वेदना
चैन कहो अब पाऊँ कहाँ
तुम आ जाओ तुमको पुकारूँ
कब से तेरी राह निहारूँ
ढून्ढ रही है अखियां मेरी
हाय गोपाल मेरो छुपे कहाँ
कोई नही........
जागी जागी सोई सोई
हर पल आस तेरी में रोई
जैसी भी हूँ तेरी होई
फिर भी तू क्यों कहे ना हाँ
कोई नही.........
क्यों तेरे संग आँख लड़ाई
जग में बैठी पर हूँ पराई
क्यों है इतनी देर लगाई
साहिब मेरे अब ले अपना
कोई नही.......
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