जब से कान्हा

जब ते कान्हा ब्रज ते जावे
कोई ब्रजवासी चैन ना पावे

ना जाओ जी प्रियतम प्यारे
निसदिन बरसे नैन हमारे

रोज़ रोज़ यमुना तट आना
मनमोहन तेरी बंसी बजाना

प्यारी जू और गोपियन पर
तिरछी नज़र के तीर चलाना

गायों और ग्वालन के संग नित
उछल कूदकर वन में जाना

घर घर करना माखन चोरी
गोपियन की सब मटकी फोड़ी

गोवर्धन अंगुली पे उठाया
गोकुल को हरि आप बचाया

पूतना और कई असुर संहारे
कृपा कीन्ही जग ते उद्धारे

अब मथुरा क्यों जाए रहे हो
ब्रज को क्यों बिसराए रहे हो

माँ यशोदा हुई पुत्रहीना
कान्हा बिना न भावे जीना

महर मेरो कान्हा ला दो
हिय का ये संताप मिटा दो

पशु पक्षी तरु लता सब पुकारें
गोप गोपियां सब राह निहारें

ऐसी जड़वत हुई है यसोदा मैया
कबहु आवे मेरो कान्हा कन्हिया

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