*तृषातुर चातक नेत्र* श्रीप्रिया पलँग पर बैठी हुई हैं जिनकी कमर पलँग से सटी हुई है। श्रीप्रिया जु विचित्र दशा में बैठी हुई हैं, नेत्र मूंदे हुए हैं , स्वास अति तीव्र गति ...
हरिहौं अपनी ओर देखत लजाऊँ मानुस जन्म अकारथ कीन्हीं नाम न हरि कौ गाऊँ बिसराय रही साँचो धन अपनो बाँवरी मुद्रा जगत कमाउँ हिय न लगै कबहुँ मिलन चटपटी पापन सौं शरमाउँ हा हा नाथा ग...
हरिहौं जन्म अकारण कीन्हा भजन विहीन जग वीथिन फिरिहैं एकै नाम न लीन्हा भजन विहीन की गति नाँहिं षड रस लोभ न जावै साँचो लोभ जो होतौ भजन कौ स्वास न विरथा आवै मूढ़ा बाँवरी फिरै नाथ ...
हरिहौं कैसो कटे भव फन्द बाँवरी क्षणहुँ न नाम उचारै बुद्धिहीन मति मन्द बुद्धिहीन मति मन्द बाँवरी कबहुँ नाय लजात बिगरी दिन दिन दसा नाथा मेरी बनै न अबहुँ बनात कोऊ बल न मेरौ ना...
हरिहौं आपहुँ राख रखावो लौटत फिरत सूकरी सम कीच माँहिं पकरो आय बचावो बुद्धिहीन बलहीन अधमा बाँवरी पतिता जन्म जन्म की अधम उद्धारण नाम होय नाथा राखो आज अधम की ऐसी बिगरी दसा मेर...
हरिहौं जन्म जन्म गये बीत बाँवरी लोभी जगति फिरत रही भूल रही साँची प्रीत साँचो नाथ न चेते आपनो लोभी जगति की भारी स्वास स्वास बिरथा बाँवरी कीन्हीं जन्मन जन्म बिगारी अबहुँ पछ...
हरिहौं साँची चटपटी न लागी कबहुँ दरस कौ हिय न तल्फे जग वीथिन रही भागी जगति की लोभी बनी बाँवरी भजन लोभ न कीन्हीं बिरथा गमाय स्वासा स्वासा कबहुँ हरिनाम न लीन्हीं किस विध समझै र...
हरिहौं अबहुँ न देयो कोऊ स्वासा नाम भजन की चटपटी न लागी साँची नाय पिपासा जन्मन जन्म गये बहुतेरे बाँवरी हाथन लगी निरासा न उपजै हिय प्रेम रस कबहुँ न समझै प्रेम की भासा बाँवरी ...
हरिहौं फटिहै न काहे छाती साँचो नाथ बिसारी फिरै आपनो षड रस फिरै पाती धिक धिक जीवन तेरौ होय बाँवरी नेकहुँ नाय लजाती पसु सम सुधि खावन पीवन की न भजन की बात सुहाती छांड अमृत नाम ह...
हरिहौं अबहुँ न देयो कोऊ स्वासा नाम भजन की चटपटी न लागी साँची नाय पिपासा जन्मन जन्म गये बहुतेरे बाँवरी हाथन लगी निरासा न उपजै हिय प्रेम रस कबहुँ न समझै प्रेम की भासा बाँवर...
हरिहौं हम माया कौ कीट विषय रस अति नीको लागे रहै जन्म कौ ढीठ रहै जन्म को ढीठ जड़ता विषयन की भारी कबहुँ न लगी हरिभजन चटपटी स्वासा स्वास बिगारी स्वासा स्वास बिगारी हरिहौं अबहुँ ...
हरिहौं हम धरती कौ बोझा कोऊ बात न बनत भजन की जन्म की भूलै सोझा जन्म की भूली सोझा बाँवरी बिरथा कीन्हीं सब स्वासा कौन विध हरि सेवा दरसन छांड दीजौ बाँवरी एहै आसा अब निरखिहौ कौन क...
श्रीहरिदास!!! श्रीहरिदास जो नित्य रटे मन चित्त लाय श्रीहरिदास कृपा ते हिय प्रेम रस उमगाय युगल रूप प्रकट कियो श्री निधिवन कुँज श्रीहरिदास रट री रसना कृपानिधि प्रेम कौ पुँज ...
हरिहौं मेरौ न कोऊ ठौर ऐसी दसा कीजौ मेरौ नाथा एकै नाम हो गौर गौर गौरांग रटै यह जिव्हा हिय हरिरस उमगाय हाथ उठाय दोऊ बाँवरी हरि हरि नाम कौ गाय हरिनाम का मिले खजाना नाथा और न कछु द...
हरिहौं अबहुँ जन्म न भयौ व्यर्थ स्वास गमाई बाँवरी अजहुँ नाम न लयौ जन्म मानुस कौ पाई बाँवरी सो भी व्यर्थ गयौ कोऊ स्वासा हरिनाम न लीन्हीं काहे स्वास दयौ हरिहौं कौन चितावे बाँ...
हरिहौं हम तो प्रेम विहीना झूठो स्वांग रचै बाँवरी घूमत फिरै सदा भजन हीना घूमत फिरत भजनहीना हिय चाव प्रेम कौ नाँहिं मूढ़ अधम जन्म जन्म की फिरत जग वीथिन माँहिं कौन भाग ते प्रेम ...
*चैतन्य मम प्राण सुख राशि* चैतन्यता ही मानव जीवन का सार है। जन्म जन्म की जड़ता जीव को भगवत विमुख कर देती है। भोग विलास की गाढ़ी अति गाढ़ी परतें उस चैतन्यता को ढक देती हैं , की जीव ...
बाँवरी बिरथा जन्म गमायो मुख धर राखी जिव्हा चाण्डालिनी कबहुँ हरिनाम न गायो बात भजन की न लागे नीकी तोहे षड रस सदा सुहायो काहे बोझा ढोवे स्वासा बाँवरी तोहे बिरथा जननी जायो कब...
न सच मे नहीं हुआ मुझे कहाँ हुआ प्रेम सुना है प्रेम पागलपन होता है हमारी तो समझदारी की दीवारें बहुत बहुत ऊँची हैं सच में और सुना प्रेम झुकना सिखाता है तृण से भी नीच बना देता हम ...
हरिहौं बिगरी दसा हमारी भजन छांड जग वीथिन डोलें खावै जगति की गारी प्रेम रीति कौ नेम न समझें भजन लगै अति भारी हा हा नाथ तुम्हरे ही सम्भारै बनै बाँवरी जन्म बिगारी
हरिहौं मैं नयनन सौं अन्ध अवगुण की खान बाँवरी नाथा हिय भोग दुर्गन्ध भोग विषय रस मोहे तपावै अबहुँ कीजौ मेरौ छुटकारा साँचो पुकार उठै उर अंतर हरिनाम रहै बस प्यारा हरिभजन की लौ ...
हरिहौं देयो माया सौं छुटकारा बाँवरी निसिदिन फिरै जग लोभी हाय साँचो नाथ बिसारा जो होतौ नेह साँचो बाँवरी कण भी प्रेम का होतौ पसारा हिय रहतौ प्रेम रस उमगातौ बन जातौ प्राणन प्...
हरिहौं भजनहीन मेरौ सुभाय बाँवरी लोभी गाढ़ी विष्ठा की नाम भजन न भाय नाम भजन न भाय बाँवरी कौन भाँति प्रेम हिय आय विरथा कीन्हीं मानुस देहि मूढ़े बहुतेरे जन्म गमाय कौन विध तेरौ भ...
भूलकर भी तेरा नाम नहीं भूलता है जादू तेरे इश्क़ का नहीं तो और क्या है तेरे इश्क़ ने बदल दी साहिब मेरी जिंदगी यूँ चेहरे पर लगा चेहरा क्या कोई बदलता है भूलकर भी तेरा..... तेरी रहमतों ...
धन्य धन्य कलि अति धन्य प्रकटे प्रेमावतार कृष्णचैतन्य आप श्रीकृष्णचन्द्र प्रेम अवतार प्रकटे नाम गौर हरि कौ धार पात्र कुपात्र न कियो विचार कृष्ण प्रेम का कियो विस्तार पा...
*श्रीगुरुदेव स्तुति* गुरु रूप धर आय हरि आपहुँ कबहुँ भेद न कीजै गुरु चरण रज सदा अवलोकों नित्य सीस धर लीजै वाणी गुरु की अमृत समाना सुन सुन मन सीतल होवै जन्मन की मैल अति गाढ़ी करै ...
कोऊ की बात छोड़ मन हरिनाम सुधि लेय हरिभजन ही तारक भव सौं हरिनाम चित्त देय हरिनाम चित्त देय बाँवरी कोऊ और न साँचो मीत प्राण बनाय लीजो हरिभजन कौ गाओ प्रभु के गीत साँचो मीत एक हर...
साँचो मेरौ साहिब सदा सुखदाई बाँवरी तेरौ नाम कृपा ते गाई साँचो मेरौ साहिब साँचो होय रँग क्षण क्षण बिसरै न नाम कौ सँग साँचो मेरौ साहिब साँची देयो प्रीति सेवा सुख की न समझूँ री...
*तुम और मैं* कुछ निखर कुछ बिखर मैं यूँ तुझमें खो जाऊँ तुम मैं हो या मैं तुम हूँ कोई भी फर्क न पाऊँ संवरना है महकना है महक मुझमें जो तेरी है खिली हुई धूप के माफ़िक सर्द सुबह बिखेरी ...
वो बरसना चाहती है वो बिखरना चाहती है तुममें ही खोकर वह फिर कुछ निखरना चाहती है है कैसा प्रेम ज्वार उठा जल में जल मिलने को आतुर तुम में खोकर तुमसी होकर फिर से सजना चाहती है करत...
यूँ तो न खेलिये इस दिल से बार बार खोकर तुम्हें दिल क्यों मेरा रोता है अब जार जार मिलकर भी मिलते नहीं कैसी है अदा तुम्हारी नए नए से लगते हो मिलते हो जितनी बार यूँ तो न ....... माना कि हू...
[22/06, 18:12] श्रीश्रीगौरांग कृपा: तेरे नाम के बिना इस रूह को सुकून कहाँ आता है फिर भी यह गुस्ताख़ दिल क्यों तुझको भूल जाता है [22/06, 18:24] श्रीश्रीगौरांग कृपा: यह क्या जाम जो अभी पिया अभी प्यास म...
हरिहौं कबहुँ नाम भजन कौ बल पाऊँ नाम ही होय रति मति कबहुँ क्षण क्षण न बिसराऊं क्षण क्षण न बिसराऊं हरिहौं ऐसी कीजौ दसा हमारी बाँवरी पावै स्वाद भजन को कबहुँ बिरथा जन्म बिगारी न...