बिसरू न चरणन तोरे
प्रभु जी!! बिसरुं न चरणन तोरे।
शरण पड़ी तेरी बाँवरी दासी , देखो न अवगुण मोरे।
मैं अवगुण की खान हूँ नाथा विनय करूँ कर जोरे।
हिय मन्दिर में अबहुँ आन विराजो दासी करै निहोरे।
बहुत गई विरथा यह आयु दिन अबहुँ हैं थोरे।
दर्शह्न को अकुलावत बाँवरी अखियाँ कृष्णचैतन्य गोरे।
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