नाम भजन ते दूरी

नाम भजन ते दूरी अति कीन्हीं।
वृथा गमावे जन्म बाँवरी ,जिव्हा कबहुँ हरिनाम न लीन्हीं।
भाज पड़ै विषयन रस माँहिं,षड रस तोहे अति सुहावै।
मुख धर लीन्हीं चण्डालिनी जिव्हा, कबहुँ हरिनाम न गावै।
धिक-धिक तेरौ जन्म बाँवरी,कबहुँ तू भव निद्रा त्यागै।
कबहुँ भजन लगै प्राण ते प्यारौ, कबहुँ हिय भजन माहिं लागै।

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