अपनी कही बाँवरी बात
अपनी कही बाँवरी बात।
भजन कौ समय लगे अति भारी, क्षनहुँ हिय न रमात।
इत-उत डोले रैन दिवा ही, सुमिरणी न पकरै हाथ।
कौ विधि प्रेम हिये उमगावै, बिनु भजन न कोऊ साथ।
जिव्हा सौं कबहुँ नाम न उचरै,न कर सौं सेवा सुहात।
पड़ी रहवै जगत विष्ठा माहिं,कोऊ विध बिगड़ी बनै बात।
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