नहीं प्रेम का कोई लक्षण
नहीं प्रेम का कोई लक्षण, नहीं उदित हृदय में कोई भाव।
तुम्हें किंचित सुख दे पाऊँ क्षण भर उठा नहीं ऐसा कोई चाव।
क्षण भर तुम्हारे सुख का चिन्तन कभी हृदय यह न कर पाया।
प्रेम कभी तुम से मैं कर पाऊँ न ऐसा कोई भाव जगाया।
तुमहीं प्रेमी रहे सदा से ,सदा हृदय भरा रहता अनुराग ।
हाय अभागी विषय रस भोगी कैसे करूँ मैं लोभ त्याग।
भरा सदा मद मत्सर मुझमें नहीं कण भी उपजै है प्रेम।
भोग वासना भरी है ऐसे क्या जाने बाँवरी प्रेम को नेम।
तुम ही सदा रहे मेरे प्रियतम कौन से मुख से कह पाऊँ।
भरी लालसा हृदय में इतनी किस विधि प्रेम में बह पाऊँ।
प्रेम जो होता मुझमें कण भी रहता चिंतन प्रियतम का सुख।
हाय वृथा जीवन यह प्रेम विहीना लेश न हुआ यह दुख।
कौन सी जगह बिठाऊँ तुमको हृदय लगा विषय भोग का स्वाद।
किस विधि बाँवरी प्रेम तू जाने किस विधि जाने प्रेम उन्माद।
प्रेम की दशा बड़ी विचित्र , विचित्र बड़ा प्रेम समर्पण।
है ही नहीं शेष कोई कुछ किया जाए प्रियतम को अर्पण।
यही सोच अब हृदय लगी है प्रेम होय तुमसे किसी विधि।
किंचित सुख साधन हो जाऊँ प्रियतम तुम हो जाओ मेरी निधि।
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