बेरँग सी जिंदगी

बेरँग सी इस जिंदगी में तेरा कोई रँग न आया
न हमको कोई सलीका न इश्क़ का कोई ढंग आया
बेरँग सी.......

बेरँग ही नहीं हैं बदरंग हो चुके हम
बदरंग को छुड़ाने तू भी तो सँग न आया
बेरँग सी......

फूलों का भी खिलना बेवजह ही हुआ प्यारे
गर फूलों से मिलने कोई पतंग ही न आया
बेरँग सी.....

खुशियों की महफिलों में भी दर्द में घुलते हैं
हर महफ़िल में जाकर भी दिल कोई रँग न लाया
बेरँग सी.....

बेरँग सी इस जिंदगी में तेरा कोई रँग न आया
न हमको कोई सलीका न इश्क़ का कोई ढंग आया

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