गौर हृदय

*गौर हृदय*

   प्रेम के रँग हुलास में डूबते हुए प्रियाप्रियतम एक दूसरे को परस्पर सुख देते हुए भी तृषित हो रहे हैं। उनके हृदय प्रेम रस से उमग रहे हैं, फिर भी हृदय में परस्पर सुख का अभाव हो रहा है। यही अभाव इस प्रेम को क्षण क्षण तृषित कर क्षण क्षण वर्धित कर रहा है।दोनो एक दूसरे में समा समाकर भी अकुला रहे हैं कि किस भाँति एक दूसरे को सुख दे सके । युगल की यह नित्य स्थिति है जो उनके प्रेम को नव नवायमान करती है।प्रियतम श्यामसुन्दर अपनी प्राणेश्वरी को नेत्र भर देख भी नहीं पा रहे । उनमे समाये भी हुए परन्तु फिर भी रस तृषा से अकुला रहे। अपनी प्राणेश्वरी के चिंतन में कभी तो ऐसे हो जाते की अपना अस्तित्व ही भूल जाते , स्वयम को राधा ही अनुभव करते। प्रेम में स्वयम का होना ही तो एक अभाव है। प्रियतम का हृदय प्रिया जु के प्रेम में ऐसे व्याकुल हो जाता है कि वह स्वयम को भूल राधा ही होना चाहते।अपनी प्राणेश्वरी में समाए हुए भी, उनसे नित्य अभिन्नता रखते हुए भी राधा होने की इच्छा करते हैं।

राधा!मैं राधा हो जाता
कृष्ण कृष्ण सदा मुख से गाता
क्या सुख लेती प्राणा प्रेम का
मैं भी कभी आस्वादन कर पाता
राधा!मैं राधा हो जाता

रँग काँति राधा की लेता
हृदय भी राधा का ही धराता
कैसी व्याकुलता प्रेम की भारी
मेरा हृदय कभी सह पाता
राधा! मैं राधा हो जाता

कैसे प्रेम से नैंन झरैं हैं
कैसा हृदय प्रेम सागर लहराता
महाभाव की अकथनीय दशा में
किस भाँति डूबता लहराता
राधा ! मैं राधा हो जाता

कोमलता है पुष्प से बढ़कर
सौंदर्य, कारुण्य का पार न पाता
रोम रोम जिव्हा बन जाती
मुख से नाम सदा ही गाता
राधा !मैं राधा बन जाता

क्या हो तुम मैं नहीं जानता
गुण निधि तेरा सार ही पाता
मेरे हृदय का आह्लाद भाव तुम
प्रेमानन्द रहता हृदय उमगाता
राधा!मैं राधा बन जाता

सच मे प्रेम नहीं कोई मुझमें
किस विध प्राणे सुख पहुंचाता
मेरे प्राणों की संजीवनी राधे
चरणों को रख हृदय लगाता
राधा !मैं राधा हो जाता
प्राणा! मैं राधा हो जाता

         उनके हृदय की यही आकांक्षा उन्हें कृष्ण से गौर बना देती है, जिससे वह महाभाव समुद्र में डूब डूब राधा के भावों का आस्वादन करते हैं।राधा भाव राधा कांति लेकर सम्पूर्ण आह्लाद को हृदय में समेटे हुए अपने हृदय की इस वांछा को पूर्ण करने को गौर हो गए हैं।अपनी इस लीला द्वारा उन्होंने श्रीराधा प्रेम का आस्वादन तथा श्रीकृष्ण प्रेम का प्रचार ही किया है।

   निताई गौर हरि हरि बोल।

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