कहने को लफ्ज़ नहीं हैं
कहने को अब लफ्ज़ नहीं अब रूह के छाले हैं
सम्भलता नहीं दिल हमसे जाने कैसे सम्भाले हैं
ये सच है अब तलक न हमको इश्क़ का हुनर आया
इस दिल से अरमान सब तेरे इश्क़ के निकाले हैं
कहने को अब लफ्ज़......
देखें जो इश्क़ तेरा तो नज़र ही नहीं उठती
तेरे इश्क़ के तो साहिब अंदाज निराले हैं
कहने को अब लफ्ज़ नहीं.....
जाने क्यों खुद के वजूद से नस नस सुलगती है
क्यों सांस ले रहे हैं क्यों जिस्म यह पाले हैं
कहने को अब लफ्ज़......
लो हमने इकरार किया हममें वफ़ा नहीं है
अँधेरी मेरी बस्ती है न दूर तलक उजाले हैं
कहने को तो लफ्ज़......
तुमको सुकून होगा सच में मुझसे बना के फासले
तुमको सुकून वह दे सके जो तेरे चाहने वाले हैं
कहने को अब लफ्ज़ नहीं अब रूह के छाले हैं
सम्भलता नहीं दिल हमसे जाने कैसे सम्भाले हैं
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