अँसुवन मेरौ

अँसुवन मेरौ कोऊ होत जो मोती, माला बना पिरोती ।
विषय भोग की पुतली बाँवरी, कैसो चरण अश्रु सों धोती।
जिव्हा सों न नाम निकसत रह्यौ , बिरथा रही जीवन खोती।
नाम भजन की रीति भुलाय, रहै सदा भव निद्रा सोती।
कौन भाँति मुख सौं निकसै, श्यामा तेरी दासी होती।
करुणासिन्धु दया की खान किशोरी, दृग बाँवरी नहीं भिगोती।

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