झूठो स्वांग तू रच्यौ
झूठो स्वांग तू रच्यौ बाँवरी।
कौन जन्म भजन सुधि तोहे जागि, कौन जन्म तू नाम लियौ री।
दो आखर लिखत लिखत भयौ हँकारि, वृथा स्वांग में समै गयौ री।
कौन जगावै तोहे गाढ़ निद्रा, कोऊ असर न तोपे भयौ री।
पाथर होतौ तौ घस जातौ, कौन धात कौ करेजौ लयौ री।
धिक-धिक जन्म गमाई मूढा,पुनः नहिं मानस जन्म भयौ री।
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