कबहुँ बाँवरी नाम ले टेर

कबहुँ बाँवरी नाम लै टेर।
बिरथा कीन्हौं जन्म अति नीको,उठ नाम भजन कर अबकि बेर।
गयौ जो गयौ करि भजन कौ चिंता, कीन्हीं पहले बड़ी अबेर।
जो न निकसै अबहुँ भव बन्धन सौं, पुनि-पुनि पड़त चुरासी फेर।
श्यामाश्याम भजन होय जीवन, साँझ ढलै चहै होय सवेर।
स्वास स्वास नाम की रटन बनै कबहुँ,उठ बाँवरी भई ह्वै देर।

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