तुम्हारी दस्तक
तुम कहाँ खोजते हो
हाँ !!!
खोजते ही तो हो हर घड़ी
मोहबत अपनी
बड़े भोले हो तुम
बड़े ही नादान
गलत पते पर लौटते हो
सही सुने हो तुम !!!
गलत पते पर
जो पता सही होता
तो लौटना ही क्यों होता
वहीं रह लेते न
पर तुम भी तो
आते हो
चले जाते हो
भूलते ही नहीं हो
गलत पते को भी
कई बार बताया है न साहिब
यहाँ कोई आँख प्यासी नहीं
कोई नज़र चौखट पर लगी भी तो नहीं मिलती तुमको
या कोई नज़र ऐसी
जो तुमसे मिल चमकने लगती हो
या बहने ही लगती हो
यह पता ही गलत निकला
कोई जिंदा ही नहीं साहिब
इस पते पर
हर आता पैगाम भी तो
बेरँग लौट जाता है
मुर्दों की बस्ती है यह
आँखें नहीं मुर्दों की
प्राण नहीं
कोई चेतना नहीं
एक गहरी जड़ता
एक गहरा शून्य
एक गहरा मौन
एक गहरी विस्मृति
फिर भी लौटते हो
उसी गलत पते पर
बार बार
माना तुम हो कोई जादूगर
तुम्हारे स्पर्श से बदल जाता है सब
शायद इसी जादू से कभी
कभी
हाँ कभी
कोई मुर्दा ही जी उठे
पर यह सच नहीं
तुम्हारे दिल की आस बस
बड़े भोले हो सच में
आना नहीं छोड़ते
इस मुर्दों की बस्ती में भी
चलो करते रहो
तुम अपने मन की
लगाते रहो आस
मुर्दों की बस्ती से ही
सच मे बड़े भोले हो
छोड़ नहीं सकते न
अपनी आदत
अपनी कोमलता
अपनी वफ़ा
अपना स्पर्श
देखो ध्यान से
यह न सोचना की कोई मुर्दा जी उठा
कोई हलचल हो रही
तुम तो अपनी ही हसरतों की
अपनी ही ख्वाहिशों की
अपनी ही तम्मनाओं की
अपनी ही मोहबतों की
अपनी ही खुशबुओं की
अपनी ही तरंगो की
बौछार किया करते हो
लौट लौटकर
इतने भोले मत बनो
क्या खोजने की आशा रखते
इस वीरान बस्ती में
न कोई जीता है
न कोई सुनता है
न कोई मिलता है
न कोई देखता है
न कोई हँसी है
न कोई अश्क़ हैं
कुछ है
तो एक बड़ा खालीपन
एक गहरा सन्नाटा
अरे अरे
अपनी ही आवाज़ सुन मुस्कुराते हो
बड़े भोले हो न
अब क्या कहें तुमसे
बदलने की फितरत भी तो नहीं न तुम्हारी
इस वीरान बस्ती में
अपनी ही सूरत देख
लौट जाते हो
मुस्कुराते हुए
बार बार लौटते हो
बड़े भोले हो साहिब
अब तुमसे कुछ कहते भी तो नहीं बनता
अपनी ही सूरत देख
अपनी ही आवाज़ सुन
अपनी ही खुशबू से महकते हो
समझते ही नहीं कुछ
लौटते ही रहते हो
मुस्कुराते ही रहते हो
चलो
तुम अपना सफ़र करते रहो
बस्ती है मुर्दों की यह
अजी साहिब
क्या कहें तुमसे
खोजते फिरते हो न मोहबत
इतना भी नहीं जानते
तुम आप ही मोहबत हो
सच तुम्हारा यह भोलापन
इश्क़ होकर जो इश्क़ की ही तलाश करता है
तू कैसा खुदा है जो खुद मोहबत की आस करता है
लौट लौट देते हो दस्तक वीरान बस्ती में
कभी तो कोई जगेगा यह विश्वास करता है
तू खुदा है मोहबत का मोहबत की ही तलाश में
दस्तक हर वीरान बस्ती के आस पास करता है
दस्तक हर वीरान बस्ती के आस पास करता है
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