साँचो धन श्रीवृन्दावन
साँचो धन श्रीवृन्दावन हौय।
बाँवरी तू जन्मन की निर्धन , परम विहीना हौय।
नाम भजन की रीति न कीन्हीं, बैठत पुनि पुनि रौय।
न सेवा कौ भाव कछु उपजै, विरथा जीवन खौय।
हिये ते अति खोटी होवै बाँवरी, बात बनै न कौय।
जगत कौ कीट होये सदाहि, जगत उरु राम मिलै न दौय
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