प्यारी कोऊ उपाय कीजे

प्यारी कोऊ उपाय कीजै।
पाथर हिय कबहुँ न पिघलै, विरह अति कठोर मोहि दीजै।
रोम-रोम होवै कबहुँ व्याकुल, भीज नाम रस पीजै।
पकरि लीजो मेरी बाँह स्वामिनी, विषयन गिरन न दीजै।
नाम होय जित स्वासा चालै, बाँवरी कबहुँ हिय तेरौ छीजै।
कबहुँ होय लुण्ठित ब्रज रज माहिं, हा हा स्वामिनी कीजै।

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