तेरा इश्क़ मुझमें
तेरा इश्क़ मुझमें उछलता क्यों है
खामोश न रहने दे मचलता क्यों है
बहती हैं आंखें क्यों मुझको तो इश्क़ नहीं
बनकर मोम से दिल ये पिघलता क्यों है
तेरा इश्क़......
रँग दे ए रँगरेज मुझे अपने इश्क़ के रँग में
दिल ये मेरा बार बार रँग बदलता क्यों है
तेरा इश्क़......
तेरी ही आशिकी बेताब मुझको करती है
बेकरार होकर मेरा ये दिल जलता क्यों है
तेरा इश्क़......
क्यों दिल की हर हसरत तुमपर आकर ठहरती है
लब तो खामोश हैं दिल से नाम निकलता क्यों है
तेरा इश्क़ मुझमें उछलता क्यों है
खामोश न रहने दे मचलता क्यों है
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