देह मांहि बुध्दि

देहि माहिं बुद्धि रमावै नीकी।
नाम भजन होय साँचो गहना, बिन गहने दुलहिन फीकी।
सेवा होय सिंगार प्रेम कौ साँचो, सेवा भाव हिये न आवै।
पुनि-पुनि जगत लागै अति नीकौ,बाँवरी षड रस हिये रमावै।
सेवा भजन ही सार जीवन कौ, खोटी तू हिये ते भारी।
नाम भुलाय लौटत जगत माहिं,दृग जीवन गयो वृथा री।

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