Posts

Showing posts from 2020

भज वृन्दावन धाम

*भज वृन्दावन धाम बाँवरी* भज वृन्दावन धाम बाँवरी भज वृन्दावन धाम छांड दे सब जगति की आसा युगल चरण विश्राम भज वृन्दावन धाम बाँवरी........ श्यामाश्याम जहाँ नित्य विराजित नित्य नवल श्रृंगार परम् मनोहर चिन्मय नगरी होय प्रेम कौ सकल पसार युगल चरण ही एक आधारा भजै चित्त निष्काम भज वृन्दावन धाम बाँवरी........... नाम रूप लीला गुण चिंतन श्रीवृन्दावन कौ वास महल टहलनी देय लाडली चित्त रहै यहि आस रज मस्तक धरै बाँवरी रसिकन सौं राखै काम भज वृन्दावन धाम बाँवरी ......... ध्यान रहै युगल सेवा सौंज ही ऐसा कब होय जीवन स्वास स्वास सन्चय करै बाँवरी वृन्दावन ही साँचो धन श्यामाश्याम सखी कौ खेला सेवा होय अविराम भज वृन्दावन धाम बाँवरी भज वृन्दावन धाम

दरस करावो

दरस करावो सखी पियप्यारी कौ कीजौ मोहे चरण पादुका श्रीवृन्दावन धाम लेय जावो बाँवरी स्पर्श करै इस रज का बीते बहुत काल सौं हमरे नयना युगल दरस कौ प्यासे आसा कोऊ न दर्शन की सखी बाँवरी चित्त जगति रहे फांसे हा हा प्यारे हा हा प्यारी कौन अपराध भयो अधम सौं ऐसो कोऊ भाग जगे बाँवरी दरस पाऊँ श्रीवृन्दावन कौ

कैसे भूलूँ मैं चरण तेरे प्यारी

*कैसे भूलूँ मैं चरण तेरे प्यारी* कैसे भूलूँ मैं चरण तेरे प्यारी यहि चरण धन मेरो लाडली ओ वृषभानु दुलारी इन चरणों की नूपुर का घुँघरू बन कर डोलूँ राधा राधा श्रीराधा राधा राधा नाम निरन्तर बोलूँ नाम तेरा ही टेरत लाडली बीते उमरिया सारी कैसे भूलूँ मैं चरण तेरे प्यारी.......... इन चरणों की रज को नित्य अपने भाल चढ़ाऊँ और कौन मेरो देव लाडली अब जाय जिसे मनाऊँ बाँवरी दासी तेरी ही लाडली बस तेरा ही नाम पुकारी कैसे भूलूँ मैं चरण तेरे प्यारी......... देव मुनि हरि ब्रह्म नारायण वंदत चरण तिहारे कोटिन कोटि ब्रह्माण्ड के स्वामी इन चरणन पर हारे जन्म सुफल भयै बाँवरी जो जिव्हा तेरा नाम उच्चारी कैसे भूलूँ मैं चरण तेरे प्यारी..........

चरणन की रज कीजौ

*चरणन की रज कीजौ किशोरी* चरणन की रज कीजौ किशोरी चरणन की रज कीजौ टहल महल की करै दासी बाँवरी निज चरणन रख लीजौ चरणन की रज कीजौ........ भोर होय सौं साँझ ढले तक पाऊँ टहल तिहारी प्राण प्यारो मेरो लाडलो लाडली प्राणन प्यारी लाल लाडली युगल चरण की सेवा में रख लीजौ चरणन की रज कीजौ......... सेवा थाली बनूँ तिहारी नित्य नित्य सेवा पाऊँ ऐसी रति मति कीजौ किशोरी चरणन ही चित्त लाऊँ जावक जुत जुत चरण ललि के गोद मेरी रख दीजौ चरणन की रज कीजौ....... स्वास स्वास नाम यही गाऊँ स्वामिनी मेरी श्रीराधा सकल वासना हिय की नासै चरणन रति बढ़ै अगाधा बाँवरी की यही अर्ज लाडली अब मंजूरी दीजौ चरणन की रज कीजौ........

जय जय श्रीराधिके

*जय जय श्रीराधिके* *राधिका नागरी सर्व सुखसागरी सर्व गुण आगरी जय जय श्रीराधिके* *कृष्णप्रेम दायिनी मृदुल सुभायनी कृष्ण नाम गायनी जय जय श्रीराधिके* *श्रीकृष्ण वल्लभा कृपाकोर सुलभा नित्य  उज्ज्वला जय जय श्रीराधिके* *नागर हियमणी कृष्ण रसरमणी नव रस तरँगणी जय जय श्रीराधिके* *परम् आनंदनी कृष्णसुख कन्दिनी ब्रज नव चंदिनी जय जय श्रीराधिके* *विपुल विलासनी मृदुल हासिनी सर्वाङ्ग सुवासिनी जय जय श्रीराधिके* *रस मधुशाला ब्रज नवबाला नयन विशाला जय जय श्रीराधिके* *नवल श्रृंगारिणी कृष्णसुख कारिणी निकुञ्ज विहारिणी जय जय श्रीराधिके* *परम करुणेश्वरी प्रियतम हृदयेश्वरी  नव निकुंजेश्वरी जय जय श्रीराधिके* *नवल भामिनी नित्य रस गामिनी बाँवरी हिय स्वामिनी जय जय श्रीराधिके* *नित्य आह्लादिनी रस उन्मादिनी प्रियतम हियराजिनी जय जय श्रीराधिके* *प्रियतम रसपोषिणी नित्य रस तोषिणी चँचल मृगलोचनी जय जय श्रीराधिके* *रस तरंगिनी हिय उमङ्गिनी ब्रजराज संगिनी जय जय श्रीराधिके*

तेरा ज़िक्र

*तेरा जिक्र* तेरा जिक्र ही भर दिया खुशबू से तेरी और मैं भीग रही इन इश्क़ की बारिशों में बेवज़ह तो कभी कुछ हुआ ही नहीं बन्ध गयी मैं तेरे इश्क़ की साज़िशों में तेरा जिक्र ही..... सच है कभी इश्क़ न कर पाई तुमसे तुम खुद ही उतरते रहे मेरी ख्वाहिशों में तेरा जिक्र ही...... तेरा ज़िक्र ही अब बन्दगी है मेरी इश्क़ कहाँ बंधता है बंदिशों में तेरा जिक्र ही..... मुद्दतों बाद आज फिर वही बरसात हुई सुलगती रही यह रूह जाने क्यों तपिशों में तेरा ज़िक्र ही ........ बात करते रहे उनकी हम हवाओं से लफ्ज़ ढलते गए कुछ यूं ही बंदिशों में तेरा ज़िक्र ही ..... तेरा जिक्र ही भर दिया खुशबू से तेरी और मैं भीग रही इन इश्क़ की बारिशों में

अधूरा

जाने क्यों खुद का वजूद तलाशते हैं हम मिट गए होते तो यह तलाश न होती अब तो मिटा दो सब वजूद मेरा या मेरी यह तलाश मुक्कमल करदो कहाँ बस चलता है मेरा मुझको भुलाने में तुम ही रहो तो खुद को भूल जाऊँ मैं

उनसे बात खामोशी से

बस नहीं चलता न कहीं अपना न वो मानते न यह दिल मानता जाने क्यों आज फिर से प्यास रह गई यह खामोशी ही हमको और प्यासा कर गई लिख न पाई कलम हाल ए दिल मेरा लफ़्ज़ों में बयाँ कैसे होगी दिल्लगी चलो ख़ामोशी ही सुन लो दिल की अब सुना है ख़ामोशी की बात गहरी होती है जाने क्यों अदाएँ तुम्हारी मुझमें उछलती रही मैं न रही बाकी तुम ही तुम से खेलते रहे सच कहूँ यह तड़प मुझमें कभी न थी तेरी ही मोहबत के जायके मिले मुझे देखते ही भर आती है नज़र मेरी जाने कैसे नज़रों में भरूँ उनको

श्रीप्रियाजु नामामृत

श्रीप्रियाजु नामामृत ****************  अनंग सुधा  रसोज्जवले  घनश्याम अंकराजिता  रसपंकिला  नित्य नवकलेवरी  केलिसुरभिनि  नीलकमल परागिनी  विद्युतमालिके  स्निग्धसुधे  वृन्द रसमहोषधि  तमालांगित वल्लरी  रसराग वल्लरी  नवघन आच्छादिनी  वृन्द रत्नावली  केलिकन्दर्प उत्सवे  चपल तरंगिनी  नीलमेघ अम्बरा  रसोधगारा  अनन्तरसनामिनी  वृन्द गुनमणि  माधुर्य रसमूलिनी  निभृत उत्सवे  नवदुल्हू वरणी  निभृत सम्पदा  निभृतपाक रचयनी  शरद कमलिनी  कृष्ण विभासिनी  ललितसार कौतुके  मदन रसलोभिनी  ललितवृन्द गुँथीनि  केलिरसालया  केलिसार परायणा  वृन्द सर्वेश्वरी

हे उत्सवे

*हे उत्सवे* नित्य नित्य ललित रस भरित नव उत्सव पिय हिय ताप शमन नित्य रस पावस उत्सव सहचरी हिय उमगित नव सेवा श्रृंगार उत्सव मिलित मिलित तृषित भये नव रस भरित उत्सव नव नव उमंग उठत नव सुरँग वर्षण अनंग उत्सव पिय हिय मोद बढावनि बाँवरी हिय रस तरंग उत्सव

कागज़ के फूलों की

*कागज़ के फूल* कागज़ के फूलों में खुशबुएँ कब कहाँ रहती हैं बनावटी सी ज़िन्दगी कब प्रेम धार बहती हैं एक भी अश्क़ इन आँखों का जब सच्चा नहीं फिर लबों पर इश्क़ की कहानियाँ क्यों रहती हैं कागज़ के फूलों में...... बहुत फरेबी दिल है मेरा धोखे में न आना साहिब तुमको भुला सब झूठ की परछाइयां दिल में रहती हैं कागज़ के फूलों में....... काश कभी थोड़ी सी सुलगन मिलती हमको इश्क़ की सुना है नदियां अश्कों की राह ए इश्क़ में बहती हैं कागज़ के फूलों में....... हाँ बहुत मगरूर है दिल तोड़ो तुम ज़रा इसको मंजिल पर मंजिलें झूठी इमारतों की बनती रहती हैं कागज़ के फूलों में.......  न बुझने वाली कभी अपने इश्क़ की थोड़ी प्यास दो जाने क्यों रूह यह घाट घाट पीती रहती है कागज़ के फूलों में...... इक तम्मना बख्श दो बस चूर चूर हो वज़ूद यह नई नई परतें मैली क्यों दिन दिन चढ़ती रहती हैं कागज़ के फूलों में......

9

प्रेम हिंडोरा 9*     आज मेरी स्वामिनी प्रसन्न भई,जेई कौ श्रृंगार धराती दासी अपनी प्राणा जु की बलिहारी लेय रही। स्वामिनी जु की भाव दशा आज विचित्र होय रही। कबहुँ तो ऐसो विरह जड़ता से जड़ होय की पुनः पुनः प्रियतम की रस केलि की स्मृति देय जेई दासी अपनी स्वामिनी कु श्रृंगार धरावै, परन्तु आज तो विचित्र स्थिति भई, मोरी स्वामिनी प्रसन्न भई, मोरी लाडली प्रसन्न भई।   अपने हिय वासित प्रियतम कु हिय माँहिं निरख निरख मुस्काय रही। श्रृंगार अभी पूर्ण भी न भयौ , चँचला सहसा उठ खड़ी हुई, दौड़ पड़ी हिंडोरे की ओर, प्रेम हिंडोरे की स्मृति उन्मादित कर रही श्रीप्रिया जु को।बिना रुकै श्रृंगार कक्ष से उपवन में हिंडोरे की ओर दौड़ लगा रही है। दासी अपनी स्वामिनी के पीछे दौड़ रही है कहीं इस प्रेम दशा में यह बाँवरी सम्भल न सकै तो, दासी के प्राण तो अपनी स्वामिनी के पीछे ही निकल गए जैसे।हिंडोरे पर बैठ प्यारी जु , श्रृंगारित पुष्पों को अपनी कोमल करावली से स्पर्श कर रही है, जैसे नव नव सौरभता का दान दे रही हो, नव कोमलता दे रही हो, नव मधुरता दे रही हो।     दासी ने प्यारी जु को धीरे धीरे झुलाना आरम्भ ...

10

प्रेम हिंडोरा 10*     मोरी स्वामिनी प्रसन्न भई, उमगती हुई, लहराती हुई, नाचती हुई, हर्षिणी, मोरी किशोरी ,प्रसन्ना, उज्ज्वला , मोरी भोरी स्वामिनी दौड़ती हुई जा रही है। निकुञ्ज भवन के श्रृंगार कक्ष से उपवन की ओर, मदमाती सी हिरणी, चँचला, दामिनी सी कौंध रही है। श्रीप्रिया जु की ओढ़नी लहरा रही है ।ओढ़नी भी आज स्वामिनी जु की भांति नृत्य कर रही है।श्रृंगारित कर रही है अपनी कोमला को।    श्रीस्वामिनी नवयौवना रसीली प्रियाजु अपनी लहराती हुई ओढ़नी को पुनः पुनः समेटती है। ओढ़नी भी कहाँ यह तो प्रियतम श्यामसुन्दर ही अपनी प्रिया जु को आलिंगित, श्रृंगारित कर रहे हैं। श्रीप्रिया जु के वस्त्र आभूषणों में प्रियतम ही तो समाये हुए हैं। प्रिया जु हिंडोरे पर विराजित श्यामसुन्दर को देख मुस्कुरा रही हैं, कुछ लजा रही हैं, अपनी ओढ़नी का एक सिरा लेकर होंठो में दबा रही है। प्रियतम श्यामसुन्दर के पुकारने पर स्वामिनी उनके साथ हिंडोरे पर विराज जाती हैं।     परन्तु आज प्रिया जु चँचला हुई जा रही हैं।हिंडोरे से उठ पीछे की ओर चली जाती हैं और प्रियतम को झुलाने लगती हैं। अपने प्रियतम को क्षण क्षण प्रेम...

7

 *प्रेम हिंडोरा 7*     आज प्रियतम श्यामसुंदर का जन्मोत्सव है। श्रीप्रिया जु अति प्रसन्न हैं। आज श्रीप्रिया जु ने पीला लहँगा धारण किया हुआ है जिसमे नीचे की और गुलाबी रँग की झालर है। सभी सखियन, अलियन ने भी आज पीत वस्त्र धारण किये हुए हैं। अपने प्राणधन श्रीयुगल को लाड करने को आज हिंडोरा भी पीले पुष्पों से सजाया हुआ है।    श्रीस्वामिनी जु हिंडोरे पर विराजमान हैं, परन्तु प्रियतम की प्रतीक्षा में हिंडोरा अभी झुलाया नहीं जा रहा। श्यामसुन्दर को बधाई देने का आज सभी हृदयों में चाव है, परन्तु अभी तक प्रियतम श्रीप्रिया जु के पास आए नहीं हैं। पीत वस्त्र धारण किये एक दासी श्रीस्वामिनी जु के चरणों के पास बैठी है। श्रीस्वामिनी जु के सुकोमल अरुणिम चरण जिनपर अलता महावर सुशोभित हो रही है। पैरों में मनीजड़ित , घुंघुरुदार नूपुर है तथा उंगलियों में बिछुए जगमगा रहे हैं। इन चरणों की शोभा कहते नहीं बन रही है, स्वयम प्रियतम इनकी सेवा के लिए व्याकुल रहते हैं।     दासी स्वामिनी जु के चरणों के पास ही बैठी है। स्वामिनी जु सँग प्रियतम के जन्म उत्सव की वार्ता हो रही है। सखियन अलियन ने...

8

प्रेम हिंडोरा 8* श्रीयुगल प्रियाप्रियतम सरकार पुष्प शैया पर विराजित हैं। दोनो के नेत्र परस्पर उलझे हुए हैं, नेत्रों की ही मूक वार्ता हो रही है।नेत्रों से ही जैसे एक दूसरे में समाते जा रहे हैं, उनकी यह अतृप्ति यह व्याकुलता बढ़ती जा रही है। सखियाँ अलियाँ तो इनके प्रेम उन्माद को निरतंर पुष्ट करती रहती हैं। एक दासी ने गीत के स्वर छेड़ दिये हैं नवल चंद्रा नव रँग सरसावै बिहरत दोऊ कुञ्जन माँहिं राग प्रीति कौ गावै राधा राधा प्रियतम टेरत रहै वेणु मधुर बजावैं अलियन सखियन सँग नाचत मधुर मधुर मुस्कावैं दोऊ पग धरत सँग सँग दोऊ नयनन कोर मिलावैं सखियन अलियन फिरत मदमाती नित बलिहारी जावैं सभी सखियाँ उसके स्वर में स्वर मिला श्रीयुगल को उनकी ही प्रीति सुना रही हैं, जिससे वह अति प्रसन्न हो रहे हैं।सखियों ने ढोल मृदङ्ग बजाना आरम्भ कर दिया है। एक सखी श्रीयुगल को उठा कर प्रेम हिंडोरे पर विराजित कर देती है। एक कर में प्रिया जु और दूसरे कर में प्रियतम का कर पकड़ उनको हिंडोरे तक ले आती है तथा वहाँ विराजमान करती है। गीत संगीत की मधुर मधुर लहरियाँ रस लालसा का वर्धन करने लगी हैं।    श्रीप्रियतम अपनी वेणु तथा प...

5

 *प्रेम हिंडोरा5*    श्यामसुन्दर अपनी प्राणा श्रीकिशोरी की प्रतीक्षा करते हुए हिंडोरे पर विराजित हो गए हैं। हिंडोरे के एक एक पुष्प से जैसे उनको प्रिया जु का स्पर्श अनुभव हो रहा है। श्रीप्रिया की सुकोमल करावलियों के स्पर्श से जैसे एक एक पुष्प पुलकायमान हो चुका है , जिसके स्पर्श से श्रीरसराज स्पंदित हो रहे हैं। आज सखियों मंजरियों को हिंडोरा सजाते हुए स्वामिनी जु ने स्वयम कुछ पुष्पों को हिंडोरे में सजाया है। हिंडोरे पर बैठकर रसराज रसमय होते जा रहे हैं।        श्रीप्रिया अभी सखियों सँग पुष्प वाटिका में है जहाँ वह अपने प्रियतम के लिए पुष्पमाला बनाने के लिए पुष्प स्वयं चुन रही है। सभी पुष्प अपनी स्वामिनी को वाटिका में देख परम आनन्दित हुए जा रहे हैं। ऐसे कौन से सौभाग्यशाली पुष्प हैं जिनको श्रीस्वामिनी का स्पर्श प्राप्त होना है, जो प्रियाप्रियतम की सेवा होने वाले हैं। आज तो स्वामिनी जु अपने हाथों से प्रियतम के लिए माला बनाने को व्याकुल हैं।     प्रियतम हिंडोरे पर बैठे अपनी फेंट में से वेणु निकाल कर वेणु वादन करने लगते हैं। जैसे ही वंशी की ध्वनि श्रीप...

6

*प्रेम हिंडोरा 6* पुनः हिंडोरा सजाय सजाय बैठी यह बाँवरी , परन्तु आज अपनी प्राण प्यारी जोड़ी कु हिय हिंडोरे पर विराजित न देख अकुलाय रही। हा स्वामिनी !हा प्राणे ! दासी तो सदा से अपराध ही करती रही है स्वामिनी जु , आपकी उदारता में कबहुँ कमी न रही है , हिय के भाव कुभाव सदा स्वीकार की हो किशोरी जु। आज क्या अपराध बन गयो दासी सु , हे प्राणेश्वरी !आपके चरणों की रज भी छू न पाय रही हूँ। जानती हूँ आपकी चरण रज का स्पर्श भी मेरे भाग्य या मेरे किसी कर्म फल का हिस्सा तो नहीं है परन्तु ऐसी उदारा स्वामिनी की कृपा में कभी कमी भी तो नहीं है।    प्राणेश्वरी !क्या आज सेवा स्वीकार न करोगी। कब यह दासी आपको अपने प्राण प्रियतम सँग अपने हिय वासित हिंडोरे में गलबहियाँ दिये , झूलते हुए निहार पायेगी। हे करुणेश्वरी !आपकी करुणा तो अनन्त है, क्या आज इस हिंडोरे का स्पर्श न करोगी, क्या दासी के प्राण शीतल न करोगी स्वामिनी। क्या हिंडोरे में लगा एक एक पुष्प कुमला जाएगा ऐसे ही प्राणेश्वरी। क्या आज प्रियतम की वंशी ध्वनि सुनकर आह्लादित न हुई आप। क्यों अपनी दासी को अपनी चरण रज से भी दूर रखी हो। हे प्राणेश्वरी !जब प्राण...

4

*प्रेम हिंडोरा 4*       श्रीप्रिया बहुत समय से मौन है, भीतर प्रियतम सँग ही मूक वार्ता हो रही है जिसे सखियाँ मंजरियाँ उनके हाव भाव से जानने का प्रयत्न कर रही हैं। मूक वाणी है पर हृदय भीतर कोई आह्लाद हो जैसे, प्रियतम की किसी मधुर स्मृति में को ही जी रही हों जैसे। सहसा उनकी दृष्टि एक मयूर पिछ पर पड़ती है। प्यारी जु उस मयूर पिछ को उठाती हुई बाहर उपवन की ओर चरण धरती है।    मयूर पिछ कभी कपोलों से छूने पर प्रसन्नतावत खिलखिला देती है, जैसे प्रियतम का स्पर्श ही कपोलों पर अनुभव करती है। कभी मयूर पिछ को हृदय से लगा लेती है। पुनः पुनः उसे निहारती है, जैसे प्रियतम सँग मूक वार्ता हो रही है अभी। हृदय से हृदय का प्रेम स्पंदन। मंजरियाँ स्वामिनी की इस भाव मुद्रा को निहारती हुई उनके पीछे पीछे चल रही हैं।         प्यारी जु इस मयूर पिछ को हिंडोरे पर विराजमान कर स्वयम हिंडोरे को धीरे धीरे झूला रही है।जैसे वह मयूर पिछ नहीं बल्कि श्यामसुंदर ही हैं।पुनः पुनः निहारती , पुनः पुनः मुस्कुराती हुई, हिंडोरे को झूला रही है, भीतर हृदय में प्रियतम सँग ही प्रेम हिंडोरे में विरा...

3

*प्रेम हिंडोरा 3*         श्रीयुगल को नित नित नये चाव लड़ाना ही तो दासी, मञ्जरी , किंकरियों का सुख है, अपने अनन्त कोटि प्राणों का सुख श्रीयुगल का सुख। आज फिर अपने प्राण श्रीयुगल के लिए उपवन में हिंडोरा सजाया है। सभी मंजरियों का हृदय आह्लादित हो रहा है, उपवन में मन्द मन्द सुगन्धित पवन प्रसारित हो रही है। प्रत्येक पुष्प, लता, वल्लरी, वृक्ष, खग, मृग जैसे अपने प्राणों को निहारने को उन्मादित हैं। जैसे ही श्रीयुगल इस झूले पर विराजित हों हर कोई अपने हृदय में प्रेम हिंडोरे में विराजित करने की प्रतीक्षा में है, सभी को अपनी अपनी भाव सेवा देकर श्रीश्यामाश्याम को सुख देना है। उन्हें नेत्र भर निहारने की व्याकुलता प्रत्येक हृदय में हो रही है।     पवन मधुरता से भरती जा रही है। आकाश में काले काले बादल छा रहे हैं। अब तो प्रत्येक हृदय उन्मादित हुआ जा रहा है। कुछ सखियों सँग श्यामाश्याम आकर हिंडोरे पर विराजमान हो जाते हैं।      प्यारे श्यामाश्याम की निहारन से ही प्रत्येक हृदय फूल रहा है। जब प्यारे श्रीयुगल प्रेम हिंडोरे पर विराजमान होकर गलबहियाँ दिये बैठते हैं तो...

2

*प्रेम हिंडोरा 2* सावन की मदमाती ऋतु में अपने प्राणधन श्रीश्यामाश्याम के सुख हेतु आज फिर मंजरियों, किंकरियों ने हिंडोरा सजाय दियो है। सभी सखियों के हृदय में उनके प्राणधन सदैव प्रेम हिंडोरे में झूलते रहवैं , जेई अलियन के हिय को आनँद होय। सखियाँ अलियाँ युगल सुख हेतु सेवा होय जावें तो युगल उनके सुख हेतु नव नव लीला करें।जेई हिंडोरे की रस्सी कोई प्राकृतिक रस्सी न होय री, जेइ तो अलियन हिय को गाढ़ अनुराग सौं सजाया जावै। नित अपने युगल सुख हेतु नव नव श्रृंगार करें, नव नव खेल करें जेई बांवरियाँ।      अपने युगलवर को हिंडोरे पर विराजित कर नव नव क्रीड़ा द्वारा उनकी रसमयी क्रीड़ा को नव नव रूप देना ही अलियन के हिय को सुख होवै। दोऊ सुकुमार, कुँवर कुँवरी अलियन के हिय श्रृंगार को धारण करने को हिंडोरे में विराजित होय गये। तनिक जोर सौं झोटा दे री बाँवरी, जेई कोमल कोमल सुकुमार प्रिया लाल जु के हिय माँहिं भी जेई झोटे को लालच होय री। जेई के सुख को सम्पादन ही तो अलियन के हिय कौ चाव होवै री। जब तक उनका हिय, उनके आभूषण, कटि किंकणी की रून झुन या झोटे सँग न सुनाई दे री , नेक सौं तेज वेग से झोटे को झुला...

हिंडोरा 1

*प्रेम हिंडोरा* प्रेम हिंडोरा ,हाँ प्रेम हिंडोरा, पुष्पों से सजा हुआ।पर पुष्प हिंडोरा क्यों नहीं सखी, प्रेम हिंडोरा कहने में जो आनँद आवे न अलियन कु , सोई अनुभव कर री। जेई प्रेम हिंडोरे में प्रेम ही पुष्प, प्रेम ही डोर , प्रेम ही हिंडोर होय गयो री। अलियन से जेई को राग, जेई को अनुराग भर भर सजायो री, अपने प्राण प्रियाप्रियतम जु के लिए *प्रेम हिंडोरा* जेई हिंडोरे पर जब सजकर हमारे प्राण हमारे युगल परस्पर आलिंगन देय , झूलेंगे री, आहा!!कितो आनँद आयगो। हमारे प्यारे प्यारी को प्रेम हिंडोरा। सभी सखियाँ मंजरियाँ प्रेम पगी इस हिंडोरे का श्रृंगार कर रही हैं। युगल के विश्राम हेतु सहचरियों ने पास ही एक पुष्प शैया भी सजा दी है।    पर इन उन्मादिनी , बाँवरी अलियन का हृदय तो आज इस हिंडोरे की झूलन से ही स्पंदित होय रह्यौ री। पुनः पुनः झूले को स्पर्श करती यह बांवरियाँ, जैसे युगल के विहार से ज्यादा आतुरता आज इनमें भरी जा रही हो। आह!!प्रेम हिंडोरा हमारे प्यारे प्यारी का प्रेम हिंडोरा सज गयो री!!उन्मादिनी हों भी क्यों न , उस प्रेम उन्मादिनी परम भाविनी अपनी प्राणेश्वरी की भाव कणिकाएँ ही तो हैं न सब , ...

श्रीहरिनाम माधुरी

श्रीहरिनाम माधुरी ************* कलिमल पावन जय श्रीहरिनाम त्रयताप नसावन जय श्रीहरिनाम हरि अभिन्ना जय श्रीहरिनाम मंगल कर्ता जय श्रीहरिनाम विघ्न विनाशक जय श्रीहरिनाम प्रेम प्रदायक जय श्रीहरिनाम प्रेम संजीवनी जय श्रीहरिनाम  परम अमृत जय श्रीहरिनाम श्रीहरि प्रदत्त जय श्रीहरिनाम   प्रेम सेतु जय श्रीहरिनाम  अमृत सञ्चय जय श्रीहरिनाम भवरोग निवारण जय श्रीहरिनाम अमंगल हर्ता जय श्रीहरिनाम पाप विनाशक जय श्रीहरिनाम कलि औषधि जय श्रीहरिनाम परम विशुद्ध जय श्रीहरिनाम प्रेम पयोधि जय श्रीहरिनाम प्रेम रसायन जय श्रीहरिनाम प्रेम सुगन्धि जय श्रीहरिनाम पुष्प पराग जय श्रीहरिनाम प्रेमिल राग जय श्रीहरिनाम रस प्रदायन जय श्रीहरिनाम  हरि कौ गायन जय श्रीहरिनाम नवल सुगन्ध जय श्रीहरिनाम द्वंद्व नाशक जय श्रीहरिनाम प्रेम अनुरागी जय श्रीहरिनाम मधुराति मधुर जय श्रीहरिनाम भक्ति धन जय श्रीहरिनाम मृदुल कलेवर जय श्रीहरिनाम रस अंकुरण जय श्रीहरिनाम चित्त हर्षण जय श्रीहरिनाम मोह विनाशक जय श्रीहरिनाम  दृष्टि प्रकाशक जय श्रीहरिनाम  प्रेम प्रसाद जय श्रीहरिनाम  नित्य अबाध जय श्रीहरिनाम हरि अनुकम्पा जय...

बिन तुम्हारे कहो

बिन तुम्हारे कहो दिल के अरमान सम्भालें कैसे दिल सम्भाले न सम्भले कहो सम्भालें कैसे जाने क्या खलबली सी मची है रूह तलक हमारी जान तक निकल रही अब सम्भालें कैसे सच है बहुत मुश्किल है राह ए मोहबत  उठते न कदम अब कहो चला लें कैसे कौन गिनेगा तुम बिन यह रुकती धड़कनें हमारी अब खुद को इन तूफानों से बचा लें कैसे अश्क़ अब एक न निकला रूह तलक जलती है ख़ामोश होती धड़कनों को अब उछालें कैसे ज़ायक़ा मिलने लगा है अब इस सुलगन का हमको दिल अपना इस आग से अब हटा लें कैसे

भजन हीन बलहीना

हरिहौं हम भजनहीन बलहीना तुम्हरौ चरण होय बल सकल हमारौ कहै बाँवरी दीना न कोऊ जप तप न कोऊ दान धर्म तुम्हरौ चरण आसा नाम तिहारे बिन कछु न सूझे देयो नाम प्रति स्वासा नाम तिहारो ही होय साँचो धन कहे निर्धन बाँवरी दासी तुम्हरी एक कृपा अवलोकन सौं मिले युगल चरण ख़्वासी

पथ चलना नहीं आवे

हरिहौं पथ चलना नाँहिं आवै मति नादान मूढ़ होय बाँवरी पुनि पुनि पथ गिर जावै होऊँ तिहारो ही जन नाथा मोहे पथ चलन समर्था दीजौ चपत लगावो या दुलरावो आपहुँ जिस भाँति चाह्वो कीजौ नाँहिं राखूँ बुद्धि बल कोऊ समर्था तुम्हरौ बल बलशाली निज चरणन ही रति मति कीजौ छुटै विषय भोग जंजाली

जय राधा

*जय राधा* *कृष्ण विलासनी कृष्ण हुलासिनी कृष्ण सुखराषिणी जय राधा* *कृष्ण विहारिणी कृष्ण सुखकारिणी कृष्ण भाषिणी जय राधा* *कृष्ण नवेली कृष्ण सहेली कृष्ण पहेली जय राधा* *कृष्ण आधारिणी कृष्ण विचारिणी  कृष्ण गहेली जय राधा* *कृष्ण वामंगिनी कृष्ण रंगिनी कृष्ण संगिनी जय राधा* *कृष्ण आह्लादिनी कृष्ण वादिनी कृष्ण तरंगिनी जय राधा* *कृष्ण उमगनी कृष्ण विलसनी कृष्ण आनन्दिते जय राधा* *कृष्ण सेव्या कृष्ण सेविता कृष्ण वन्दिते जय राधा* *कृष्ण मोहिनी कृष्ण मनहरिणी कृष्ण सुरभिता जय राधा* *कृष्ण सम्पदा कृष्ण प्रेमलता कृष्ण मनमीता जय राधा*

श्रीमहामन्त्र में निभृत

*श्रीमहामन्त्र युगल सुख में निभृत पौढ़ाई*   *हरे कृष्ण*   श्रीकृष्ण के रस लोलुप्त हिय के ताप को हरण करने वाली, हे कृष्ण ताप हरणी ,अपने प्रियतम के हिय ताप का हरण करो स्वामिनी *हरे कृष्ण*  हे हरे ! हे राधिके ! आप श्रीप्रियतम को सुख सेज का विलास प्रदान करो , *कृष्ण कृष्ण*  हे रसदायिनी ! श्रीकृष्ण के समस्त सुखों का सार आप हो। श्रीकृष्ण सुखकारिणी , श्रीकृष्ण हिय आह्लादिनी , निभृत रस विस्तारिणी ! आपका रोम रोम कृष्ण मई है। आपके रोम रोम में प्रियतमके सुख का ही विलास है, हृदय मन्दिर की सुख सेज पर प्रियतम कृष्ण , श्यामसुंदर संग रस विलास करो *हरे हरे* हे हरिभामिनी ! हे पिय उरहरणी ! आपके चंचल नेत्रों का विलास प्रियतम के हृदय का हरण करने वाला है। उनके समस्त सुखों का विस्तार करने वाली हे राधिके ! *हरे राम*  हे हरे , प्रियतम को रमण प्रदान करो *हरे राम* हे रमणे ! हे केलि सुखवर्षिणी ! प्रियतम की समस्त रस आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाली हे पूर्णे ! हे रमणे ! *राम राम* प्रियतम की समस्त सुख लालसाएँ, सुख सेज की पौढ़ाई, समस्त निभृत सुख , रमण रमण , हे रमणे ! *हरे हरे* हे हरणी ! हे अनुपमे ...

कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा

*कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा* कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा इस प्रीति के गीत सदा गाऊँ हे प्रियतम एक ही विनती है उस श्रृंगारिणी का श्रृंगार न हो पाऊँ तो उस मधुर ललित श्रृंगार की एक झरण ही करदो उस श्रृंगारिणी के चरण कमल का कोई श्रृंगार न हो पाऊँ उन चरणों की रज हो जाऊँ नहीं कोई योग्यता ऐसी  कोई पुष्प बनूँ बनमाल का मैं उन उलझे महके श्रृंगारों की मीठी सी पुलकन हो जाऊँ मधुर कमलिनी जिसे चरण धरें नहीं नूपुर का हुई घुँघरू कोई एक खनक रुनक ही कर देना राधा राधा कह इठला जाऊँ जिस हृदय में नाम की गूँज उठे जिस जिव्हा पर वह गीत सजे जिस भाव से हो श्रृंगार मधुर चरण रज बाँवरी बन जाऊँ कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा इस प्रीति के गीत सदा गाऊं

प्रीति हमारी काँची

हरिहौं प्रीति हमारी काँचो काँची देह बनी माटी की रँग चढ़त न साँचो मूढ़ बाँवरी जगति धावै हरि सौं प्रेम न रांचो अधम जाने न नेम प्रेम कौ कोरा ज्ञान ही बांचो खाली पड़ो नाम कौ खाता नाथा आपहुँ जाँचो आपहुँ निभावो रीति प्रेम की रीति तुम्हरी साँचो

बाँवरी भजन ते हीन

हरिहौं बाँवरी भजन ते हीना भावै स्वाद जगति कौ मूढ़ा जनमन खोटा कीन्हा जिव्हा चाहै स्वाद बहु भाँतिन हरिनाम नाँहीं लीन्हा अहंम की पुतली बाँवरी खोटी कबहुँ बनै न दीना हिय भरै कल्मष पतित बाँवरी राखै चित्त मलीना कौन भाँति हिय प्रेम रस उमगे मार्ग प्रेम चली ना

ललित नवनीत सुं

*ललित नवीनत सुं लपेटि तृषित पवाईये*    ललित नवनीत , हाँ री तृषित प्रियतम की सकल रस लालसाएँ , ललित श्रृंगार, ललित नवनीत से ही पूर्ण हो सकती हैं। यह ललित नवनीत, ललित श्रृंगार , सम्पूर्ण लालित्य श्रीप्रिया के हृदय से ही झरित हो रहा है। जैसे जैसे प्रियतम की तृषाएँ गाढ होती जाती हैं, त्यों त्यों प्यारी जु का यह ललित अनुराग , ललित वर्षण और और ललित, और और मधुर होता जाता है। श्रृंगार कोमल कोमल होता जाता है, वर्धित होता जाता है।    हे प्यारी *ललित नवीनत सुं लपेटि तृषित पवाईये* अपने इस ललित अनुराग की चाशनी में लपेट लपेट, प्रेम केलि रूपेण मधुर मधुर व्यंजन श्रीप्रियतम को पवाइये। अपनी कोमलता से, अपनी सरसता से , अपने श्रृंगार से प्रियतम के क्षुधित , तृषित हृदय को रसमयता प्रदान कीजिये। आप ही तृषातुर प्रियतम को अपने अनुराग में रंग कर , इस ललित नवनीत से पोषण करने वाली हो। हे लालित्य वर्षणी ! हे मधुरे ! हे नवनीता आपके रसवर्षण से , आपके श्रृंगार की नवल नवल सुगन्ध से ही , श्रीप्रियतम की लालसाएँ वर्धित होती जा रही हैं, उसी के अनुरूप आपकी सुख प्रदायनी लालसाएँ भी ललित , ललित, मधुर अनुरंजित...

हे प्यारी रस भामिनी

1 हे प्यारी रस भामिनी दीजौ नवल सिंगार  तृषित रूप-क्षुधित रसिक पिय लोचत नव रससार नवल नवल सिंगार नित नवल नवल रूप रसरीति मेटो सकल हिय ताप किशोरी अलबेली ललित रँगी प्रीति मनोरमे रस बढावै सु केलि नवेली नित गाईये बाँवरी चाह्वै स्वामिनी ललित नवीनत सुं लपेटि केलित तृषा पवाईये

गोरे लाल जोरि2

2 गौरे लाल जोरि अति ललित सुं बसन्त साजै री ललित सिंगार ललित रस बरसै ललित रँग राजै री मुदित युगल नवल रँग रंजित नवल फूलैर उमागै री पीत वसन ललित हसन चित्त हरणी छबि लागै री अलबेली जोरि ललित विलास धमार नवरँग झरि भावै री बाँवरी हरिदासी दासी कृपा सौं नित नवल केलि गावै री

माधुरी कुमुद कली

*माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री*    सम्पूर्ण माधुर्य , सम्पूर्ण लालित्य भरित श्रीप्रिया , रसिकनी कुमुदिनी रसभामिनी विराज रही हैं। इस रस भरित , उमगित कुमुदिनी को विलसने की सम्पूर्ण कलाएँ आवें री। सम्पूर्ण रस पण्डिते , श्रीप्रिया जु। कोक कला निपुणे , अपने सम्पूर्ण कला विलास सँग विराजी हुई हैं, श्रीप्रियतम की वक्ष स्थली पर।     रस भँवर श्रीप्रियतम इस सुरँगीनि कुमुदिनी के साथ नवल नवल रस भाव से अनुरागित हो नवल नवल श्रृंगार का रसपान करते अघाते नहीं हैं। इस कुमुदिनी रस कलिका का सुरँग रँग, क्षण क्षण नवीन , क्षण क्षण प्रफुल्लित होता जाता है, वहीं रस भँवर इस कुमुदिनी के रस पान हेतु तृषातुर ह्वै जावे।      बलिहारी ! बलिहारी इस रस रँगीनि ललित जोरि की। बलिहारी ! बलिहारी इस ललित श्रृंगार की। रस की लालसा बढ़ती जावे .....रस वर्षण , रस उमगन की बलिहारी ! चलो री गावें *माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री* *माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री* *माधुरी कुमुद कलि ते कुमुदिनी प्रिया बिराजै री*......... रुके ही न यह ललित रस वर्षण.....

आज नाचत दोऊ

आज नाचत दोऊ रँग रँगीले प्रेम रँग रँगी नव जोरि दोऊ लागत अति छैल छबीले ताता थईथई सँग पद राखत ताल मिलाय जोरि विलसै भर भर रँग उड़ावत दोऊ सखिन सबहि सुख आँखिन निरखै बलि बलि गावत लेत बलैयां नित्य नवल नव रँग विलास श्यामाश्याम प्राण दोऊ मोरे हिय निकुंजन करो सुखरास

रस भींजत दोऊ

रस भींजत दोऊ रँग रँगीले मची रँगन कौ कीच प्रेम बेलि बाढ़त नव भाँति नित्य नवल रस नव सींच उड़त गुलाल अबीर कुमकुम रँगन रँग मच्यो चहुँ ओर नवल रस भीनी सब अलियन रस भींजे युगल किशोर हो हो होरी बजत बधाई बाढ़त बहु भाँतिन रँग विलास श्यामाश्याम प्राण दोऊ मेरे हिय निकुंजन नित्य सुखरास

ललित रस

*ललित रस* *ललित किशोरी ललित किशोर* *ललित निशा ललित भोर* *ललित श्रृंगार ललित व्योहार* *ललित हसन ललित वसन* *ललित वेणु ललित रेणु* *ललित नाद ललित वाद्य* *ललित केलि ललित बेलि* *ललित कुँज ललित गूँज* *ललित थाप ललित नाच* *ललित झँकार ललित रससार* *ललित झलकन ललित पुलकन*   *जयजय ललिते जयजय ललिते*

आज बिहरत वन कुँज

आज बिहरत वन कुँज जोरि अलबेली आलि जोरि अलबेली नवल रँग खेली आलि नवल नवल रँग की रेलारेली आलि झूमत किसोर दोऊ झूमत सहेली महकत कुसुम चहुँ ओरे गुलाब चमेली जोरि अलबेली री मोरी जोरि अलबेली

आलि री अलबेली जु

आलि री अलबेली जु मोरे हिय कुँज खेलिये हिय कुँज खेलिये प्रियतम सँग खेलिये प्रियतम सँग खेलिये ललित रँग खेलिये ललित रँग खेलिये सुरँग रँग खेलिये सुरँग रँग खेलिये नवल रँग खेलिये आलि री अलबेली जु मोरे हिय कुँज खेलिये

श्रीयुगल को लोभ

*श्रीयुगल कौ लोभ*  श्रीयुगल कौ लोभ , जेई सुन चकित न भयो री । जाने हैं री सब   अलियाँ री , इन बिहारी बिहारणी जु को क्या लोभ होवै री , याको लोभ होय नित्य बिहार। यही बिहार का लोभ प्रियाप्रियतम को नित्य बिहारी बिहारणी करै री। भरे रहें यह क्षण क्षण बिहार में। याको यह लोभ बढतो ही जावै री। जेई बिहार ही युगल को वास्तविक सुख होय री। अलियन हिय को सुख होय री।     जेई बिहार जितनो गाढ़ होतो जावै जेई के हिय की तृषा बढ़ती जावै री , लोभ बढतो जावे री , मिले मिले ही मानो कबहुँ न मिले री। ऐसो लगे कोई सिंधु में डूब डूब जावे री पर एक बूंद की तृप्ति न होवै री। जेई प्रेम सिंधु, याको बिहार होय गयो री। जितना बिहार गाढ़ होय गयो उतनी अतृप्ति भीतर *मिलत मिलत अकुलाय उमगि......* श्रीयुगल को स्वाद बिहार युगल हिय उन्माद बिहार युगल हिय आह्लाद बिहार       यह बिहार ही इनको सम्पूर्ण खेल होय री। यही बिहार ही इनको स्वाद , आह्लाद होवै री। नित्य यही उन्माद में भरे रहवैं। यही बिहारणी आह्लादिनी की भाव वृत्तियाँ जेई बिहार को भर भर गावैं री , जेई बिहार को रचावैं, यही बिहार को सजावैं री। य...

श्यामाश्याम हमारे

*प्राणधन श्यामाश्याम हमारे* प्राणधन श्यामाश्याम हमारे परमधन श्यामाश्याम हमारे जगति का धन कितनो जोड़ो सँग चले न आगे भज भज युगल कौ नाम बाँवरी भाग अमोलक जागे निशिदिन बाढ़त धन यह सवाया इक दिन नहीं घटा रे प्राणधन श्यामाश्याम हमारे परमधन श्यामाश्याम हमारे नाम धन युगल कौ जोड़ बाँवरी अपनी स्वासा स्वासा युगल चरण विश्राम मिलेगा एक दिन हिय धार ले आसा युगल नाम ही होय साँचो धन देव मुनि कहत बीचारे ( विचार करके) प्राणधन श्यामाश्याम हमारे परमधन श्यामाश्याम हमारे बड़े भाग सौं मिली बाँवरी मानुस की यह काया  उससे घनी कृपा भई जो मिली श्रीगुरु चरणन छाया मिट गई भटकन जन्म जन्म की सीस धरी गुरु द्वारे प्राणधन श्यामाश्याम हमारे परमधन श्यामाश्याम हमारे सन्तन भक्तन कौ सँग पाया हरि गुरु कृपा अकारण हरिनाम की औषध पाई होवै भव रोग निवारण गुरुगौरांग की जय जयकार बाँवरी स्वासा स्वास पुकारे प्राणधन श्यामाश्याम हमारे परमधन श्यामाश्याम हमारे

कैसी मेरी बसन्त

*कैसी मेरी बसन्त प्रियतम* कैसी मेरी बसन्त प्रियतम इस पीत लौ के पीत प्रकाश में दृग बहाती मैं पीत भई कैसी मेरी बसन्त प्रियतम इस दग्ध हृदय के ताप को कैसे शीत करे पीत चन्दन कैसी मेरी बसन्त प्रियतम हृदय कुँज में कोई झंकार नहीं नहीं हुआ पीत श्रृंगार प्रियतम कैसी मेरी बसन्त प्रियतम तुम ही तुम पीत श्रृंगार मेरा  बस तुमको ढूँढ़ रही प्रियतम कैसी मेरी बसन्त प्रियतम हिय कुँज में तिमिर घना कबसे बन पीत प्रकाश बसो प्रियतम कैसी मेरी बसन्त प्रियतम कैसी मेरी बसन्त प्रियतम

तू ही बता

*तू ही बता* न तेरा पता पाया न समझा कुछ इशारा आँखों से अब बहता है बस पानी खारा खारा तू ही बता दे किस तरह दिल को मैं सम्भालूँ नहीं मुझसे सम्भलता अब बेताब है दुबारा किसको बताएँ हाल ए दिल कौन जाने बात क्या बस दर्द वही जाने जिसे इश्क़ ने हो मारा मीठी है यह जलन भी भरे कई तूफान भीतर तेरा नाम लेकर रोये बिन होता नहीं गुज़ारा हाय बड़ा मीठा मीठा दर्द है करते रहो इज़ाफ़ा इसका नशा भी साहिब लगता है मुझको प्यारा तेरे इश्क़ ने उठाये हैं तूफ़ान दिल में भारी है उतनी ही लज़्ज़त इसमें जितना है दर्द करारा आज डूबा दो मुझको साहिब इस इश्क़ के समंदर में नहीं लौटना मुझको वापिस नहीं देखना किनारा

क्यों है

*क्यों है* तुमसे दूर रहकर जीने की चाहत क्यों है ? हमको सदा से बेवफ़ा होने की आदत क्यों है ? नहीं आता इश्क़ हमको यह सच है जानते हैं फिर भी तुमको मुझसे इश्क़ की चाहत क्यों है ? है वीरान दिल यह मेरा फैला दूर तक अंधेरा बस इक तेरे नाम से ही इस दिल को राहत क्यों है ? भीतर कुछ पिघलता है आँखों से जो बहता है इस मीठी सी जलन से इस दिल को राहत क्यों है ? सच हमसे इश्क़ करके कुछ न मिलेगा साहिब पर तेरा इश्क़ ही साहिब सच्ची इबादत क्यों है ? तुमको किया है रुसवा मुद्दत से हमने ऐसे नस नस में बेवफ़ाई मेरे हाय ऐसी फितरत क्यों है ? क्यों दिल यह जल रहा है तेरा नाम लेकर बेताब सी इन साँसों को चलने की आदत क्यों है ?

कीन्ही ठगोरी

हरिहौं कीन्हीं बड़ी ठगोरी नाम धन कछु संचय न कीन्हीं ढोंग बढ़ावत जोरी कान दिये न सन्तन की बातां बाँवरी जगति दोरी नाम भजन की रीति बिसारी भाव भजन सौं कोरी कबहुँ छुटे दम्भ हिय कौ पतित बाँवरी करै निहोरी हमरो कोऊ बल नाँहिं नाथा तुमहिं किये सब होरी

रे मन हिय धर

रे मन हिय धर श्रीयुगल चरणकमल क्षण क्षण सुमिरै क्षणहुँ न बिसरै यहि सम्पति विपुल सेवत सुख पावत निशिबासर यहि प्रेम कौ फल श्रीयुगल चरण हिय धरै बाँवरी होवत मन निर्मल सकल वासना हिय की छुटै मिलत नाम कौ बल यहि अरजा करै गुरु चरण कमल सौं नासै घन तिमिर सकल

हाल ए दिल

खँजर चला के पूछते हैं क्या है हाल ए दिल मेरा खुद ही गवाही देगा दिल क्या है हाल ए दिल मेरा आँखे ही बोली आँखों से लफ़्ज़ों के दायरे सिमटे फिर अश्क़ कहने दौड़ चले क्या है हाल ए दिल मेरा बस वही इक मुलाकात ही पकड़ रही पल पल हमें जाने यह कैसा दौर है क्या है हाल ए दिल मेरा उस एक पल को छूने को सब पल मेरे सिमट रहे वो तू या कोई और था क्या है हाल ए दिल मेरा खामोश था सब एक दम कोई लहर उठी न थी मैं खुद ही खुद से पूछती क्या है हाल ए दिल मेरा जाने यह क्या तूफ़ान है बस जा रही अब जान है पल पल है दिल पुकारता यही है हाल ए दिल मेरा आँखों मे है वही अदा वही शोखियाँ हैं खिल रहीं साँसे भी रुक रही हैं अब जाने क्यों तुझसे मिल रहीं वो पल ही था कुछ मय भरा जो होश सब उड़ा गया दिल ही गवाही देगा बस क्या है हाल ए दिल मेरा

जनमोत्सव बधाई

*श्रीस्वामिनी जन्मोत्सव बधाई* *********************** गौरवामांगिनी करुणामयी श्रीस्वामिनी  नबद्वीप विलासिनी श्रीविष्णुप्रिया नामिनी श्रीनबद्वीप नित्य केलि नित्य नव नव विलास श्रीगौर आंदिनी वाम अंगे करै निवास मृदुला सरोजिनी गौरांगी गौर प्रेम प्रदायिनी गौर प्रेम रसिकनी अति कोमल सुभायनी नित्य नव नव विलास श्रीयुगल नबद्वीप धाम प्रेम अवतार गौर प्रेम स्वरूपिणी विष्णुप्रिया भाम मङ्गल मङ्गल बधाई मङ्गल मङ्गल नृत्य गान नबद्वीप श्रीयुगल सब नागरी हृदय मान नव नव श्रृंगार झूम नव नव हिय उल्लास  नदिया युगल विलसत नित्य हिय कुँज करै रास वीणा अरु मृदङ्ग बाजै मधुर मधुर नाम गान बाँवरी यहि विनती करै राखो निज दासी जान  श्रीयुगल नाम जिव्हा रटै श्रीयुगल केलि नित बाँवरी दासी सेवा करै क्षणहुँ न बिसरै चित्त जय जय नबद्वीप धाम जय जय विष्णुप्रिया गौर दासी कबहुँ चरण राखो दुई करि जोरि करै निहोर

रे मन काहे न

रे मन काहे न भजिहै राम सकल वासना छांड जगति की जुगल चरण विश्राम बाँवरी रहै जन्मन सौं खोटी मुख सौंन निकसत नाम ऐसो कृपा करो मोरे नाथा मुख नाम रह्वै आठों याम जय निताई जय निताई जय निताई

विलास

*विलास*   विलास का अर्थ है खेल , क्रीड़ा या क्रिया। सर्वत्र ही उस परम तत्व का विलास है। इसको दो तरह समझा जा सकता है बाहरी विलास और भीतरी विलास। ज्ञानी के लिए सर्वत्र मैं ही हूँ तो मेरा ही विलास है। सब रूप में मेरा ही तत्व है। प्रेमी के लिए उसका होना ही पीड़ा है। मैं नहीं तुम ही तुम हो, सर्वत्र उस प्रियतम का ही विलास है। साधक की उस बाहरी विलास की विस्मृति करते हुए उस प्रेम तत्व के भीतरी विलास तक पहुंचने की यात्रा है।    बाहरी विलास में देखें तो सर्वत्र जड़ चेतन उस प्रभु का ही विलास है। वह ही अपने विभिन्न रूप बनाकर विलसित है अर्थात क्रीड़ायमान है। अपने से अपने मे ही खेल रहा है। वही पुरुष तत्व है जो अपनी ही लीला शक्ति प्रकृति से संलग्न होकर विभिन्न रूप में विलास कर रहा है।    भीतरी विलास अर्थात उसी परम् तत्व का खेल, यहाँ यह पुरुष प्रकृति न होकर श्रीयुगल विलास, श्रीहित विलास है। यहाँ यह प्रेम तत्व प्रिया प्रियतम उनकी सहचरियों तथा श्रीवृन्दावन का विलास है। यही प्रेम तत्व मूर्तिमान स्वरूप होकर स्वयम से स्वयम में खेल रहा है। सहचरियां उसी प्रेम तत्व को लाड लड़ाकर उनके मधुर व...

जयजय राधा वल्लभ लाल

*जयजय श्रीराधावल्लभ लाल* *ललित भरित झरित माधुरी* *श्रीराधावल्लभ लाल* *नित्य नव खेल नव चातुरी* *श्रीराधावल्लभ लाल* *केलि प्रवीण उन्मद रसोत्सव* *श्रीराधावल्लभ लाल* *माधुरी भरित प्रत्येक वेणु रव* *श्रीराधावल्लभ लाल* *युगल माधुरी युगल श्रृंगार* *श्रीराधावल्लभ लाल* *प्रेम मूर्ति प्रेम रस सार* *श्रीराधावल्लभ लाल* *तृषित नयन ललित अनुराग* *श्रीराधावल्लभ लाल* *नित्य झरित मधुर नव राग* *श्रीराधावल्लभ लाल* *शरद कुँज वासन्ती झूलन* *श्रीराधावल्लभ लाल* *ललित श्रृंगार प्रेम रस फूलन* *श्रीराधावल्लभ लाल* *प्रेम रसार्चना मधुर रसरीति* *श्रीराधावल्लभ लाल* *दासी दीजौ चरणन प्रीति* *श्रीराधावल्लभ लाल* *नयन निरखन मधुर रस श्रवण* *श्रीराधावल्लभ लाल* *बाँवरी कीजौ निज प्रीति झरण* *श्रीराधावल्लभ लाल*

ललित श्रृंगारिणी ललिते

🌹🌹 *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* 🌹🌹 *ललित प्रीति अनुरागिणी जय युगल रस भरिते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* *नवल केलि विलासिनी परम् सखी वन्दिते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* *युगल चरण प्रीति प्रदायनी सकल ताप हरिते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* *जयजय प्रीति श्रृंगारिणी मृदुल प्रेम सरिते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* *श्रीयुगल सुख विस्तरिणी नव अनुराग झरिते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते* *जयजय ललित रसभरी सेवा प्रीति अन्नते* *जयजय ललित श्रृंगारिणी जयजय ललिते*

यमुना महारानी

🌼 *जय जय जय यमुना महारानी* 🌼 *जय श्रीयमुनाजु भक्ति प्रदायनी* *जय जय जय त्रयताप नसायनी* *जय जय युगल प्रेम विहारिणी* *मङ्गल करणी प्रेम रस सारिणी* *जय जय युगल केलि विहारा* *जय रसरानी जय परम् उदारा* *जय श्रीयमुने प्रेमभूमि वासिनी* *जय आनन्दे सुमंगल रासिनी* *जयजय युगल श्रृंगार धारणी* *रस सरिते भव ताप हारिणी* *जयजय युगल प्रेमरस सुरभिते* *कोटिक देव मुनि जन वन्दिते* *दीजौ बाँवरी निज प्रेम कणिका* *जय युगल विहारिणी रस मणिका*

निताई गौर

*निताई गौर हित हरिदास* निताई गौर हित हरिदास नाम, सब युगल प्रेम की कूँजी। जपत जपत नित रटत रटत नित ,प्रगटै प्रेम कौ पूँजी।। नाम रूप लीला अभिन्न सब , एकौ सार होय प्रेम। युगल नाम कौ रटन बनै , क्षण क्षण कौ यह नेम।। बाँवरी कबहुँ हिय विकल होवै पाथर ,जिव्हा सौं करै गान। लोभ वासना मद मत्सर छूटै, कबहुँ तजै देह अभिमान।। सन्तन रसिकन कौ चरण धूरि, लै बाँवरी राखै नित्य ललाम। बाँवरी ठौर युगल चरणन माँहिं ,जिव्हा सौं उच्चरै नाम।।

भाव

अपनी प्राणा श्रीप्रियाजु के करों में टूटे हुए कँगन देख दासी अतिशय व्याकुल हो उठी, भीतर जाकर कँगन चूड़ियाँ लेकर श्रीप्रियाजु की कलाई में पहना दीं। अपने ही भाव मे मग्न श्रीप्रियाजु को जैसे कोई सुधि ही नहीं कि कब कँगन टूटा, तथा कब नई कँगन चूड़ियाँ उनकी कलाई में श्रृंगारित हो रही हैं। भाव गामिनी बाहर से उठ भीतर श्रीगौरसुन्दर के शयन कक्ष में चल देती हैं।     भीतर कक्ष में दासी का प्रवेश तो नहीं, पर आज वह अपनी स्वामिनी की सेवा में भाव रूप से उनके कँगन चूड़ी बन सेवा हो गई है, कक्ष के बाहर ही उसके प्राण इस श्रृंगार से तन्मय हो गए। भीतर श्रीप्रियाजु मलिन विरहणी वेश में नहीं , अपितु श्रृंगारित आसन पर श्रीनदिया युगल अपने सम्पूर्ण श्रृंगार विलास में सुशोभित हो रहे हैं। आह !! यह दासी अपनी स्वामिनी की सेवा में आज भीतर प्रवेश कर गई जैसे। क्या हृदय इस प्रेम आधिक्य को सहन कर पाएगा, यह रस मादकता जो श्री नदिया युगल की सुख सेवा हो झरण हो रही , इन चँचल कँगन चूड़ियों को क्या स्थिर रहने देगी। रस भार से उछलती यह कँगन चूड़ियाँ रसराज को पुनः पुनः रस विवश कर रही हों जैसे, जाने क्या रस पगी उछलन से रसराज गौरसु...

बरसाना

नमो नमो जय श्रीबरसाना होय कीर्ति कुँवरी कौ वास। प्रकट भयो किशोरी राधा कियो निज लीला विलास ।।1।। श्रीवृषभानु नन्दिनी राधा होय परम् प्रेम कौ सार। जाकी एक कृपा अवलोकन कर देय भव सिन्धु पार ।।2।। जन्म लियो महल बरसाना कियो अष्ट सखियन कौ सँग। श्रीकृष्ण प्रेम आह्लादिनी राधा लिए नव नव प्रेम उमंग।।3।। अष्ट सखी प्रकटी कुँवरी सँग, विलास बरसाना परिधि। सब कौ प्राण एक किशोरी होय सर्व निधि कौ निधि।।4।। कीर्ति मैया नित दुलरावै वृषभानु सदन कौ शोभा। लाड़ सौं विलास करै लाड़िली देय परम् प्रेम कौ लोभा।।5।। श्रीबरसाना नित्य धाम होय, नित्य आनन्द सुख की राशि। नाम लिए एक बार जिव्हा सौं कल्मष सकल विनाशी।।6।। बाँवरी रज नित्य शीश चढ़ावै देव दुर्लभ यह स्थान। वेद पुराण न बनत अगोचर, देय रसिक वाणी प्रमाण ।।7।।

नाम को स्वाद

हरिहौं रसना कबहुँ पावै नाम कौ स्वाद कबहुँ हरिनाम लगै अति नीको छांड सब भोग मवाद कबहुँ जग विषय लगै मोहे खारे साँची लागै हरिनाम कमाई जन्म जन्म सौं निर्धन बाँवरी अबहुँ नाम गुरु कृपा सौं पाई हरिहौं देयो बल हरिनाम भजन कौ बाँवरी कोऊ बल नाँहिं राखै पकरि पकरि हरिनाम जपावो तबहुँ कछु नाम रस एह चाखै

मुकुलित मुकुन्द

*मुकुलित मुकुन्द माधव सर्वेश्वरा* *कृष्णचन्द्र राधावल्लभ परमेश्वरा* *ललित त्रिभंग मुकुलित कमलनैन* *नवला रँग वल्लभित नव चाटु बैन* *राधा हियमणि नवल रस नव झंकार* *हरेकृष्ण नाम युगल प्रेम रस सार* *कृष्ण नाम गुण कृष्ण लीला चरित* *कृष्ण माधुरी नित नव नव ललित* *कृष्ण कृष्ण गाय मिले राधा प्रेम प्रसाद* *राधा राधा गाय होय कृष्ण भाव आस्वाद* *युगल नाम युगल मन्त्र युगल प्रेम सार* *प्रेम धन वितरण लियो गौर अवतार* *सहज धन दियो हरेकृष्ण मन्त्र एक* *जपो कृष्ण भजो कृष्ण सहित विवेक* *कलिताप हरण भव भञ्जन गौर अवतार* *हरे कृष्ण युगल नाम दियो प्रेम रस सार* *यहि भिक्षा दीजौ बाँवरी चाह्वै नाम धन* *युगल नाम युगल प्रेम हीना पतिता निर्धन*

भक्त अपराधी

हरिहौं बाँवरी भक्तन अपराधी माया भृमित पतित अति पामर कबहुँ चित्त न साधी नाम भजन की रीति बिसराई किये अपराधन कोटि स्वास अमोल बिरथा गए सगरै बाँवरी नीयत खोटी हा हा नाथ नाँहिं बल कोय आपहुँ करो सम्भारा अपनो बल राखी बाँवरी झूठा जनमन जन्म बिगारा

कबहुँ कृपा करें स्वामिनी

कबहुँ कृपा करिहौ स्वामिनी मोरी बाँवरी कोऊ बल न राखै किशोरी न राखै समर्था थोरी क्या कीजै हाय विकल हिय किशोरी तुम्हरौ चरणन धावै टेरत नाम दृगन बहै मोरे बाँवरी झूठी साँची बात बनावै हिय चटपटी दीजौ साँची किशोरी कबहुँ हिय फटै अकुलावै कबहुँ नाम राधा लगै मीठो बाँवरी सगरै काज भुलावै

वृन्दावन वास

कबहुँ मिलिहौं श्रीवृन्दावन वास रसिकन सँग मिले निशिबासर निरखत युगल विलास कबहुँ छटै तिमिर हिय कौ गाढ़ो होय ललित प्रकास कल्मष हिय कै कबहुँ धुलि जावैं कबहुँ गौरश्याम करैं वास सकल वासना जगति कौ छूटें कबहुँ प्रपन्च कौ नास बल न राखै कोऊ निर्बल बाँवरी बस कृपा कोर की आस

हमरी गति

हमरी गति तुम्हरि लौं प्यारी तुम्हरी चौखट परि स्वामिनी न दर दर के हौं भिखारी यहि चाह्वै बाँवरी दासी तुव नाम टेरत बीते उमरिया सारी एक नाम तिहारो स्वामिनी होय कोटि भव सिन्धु भारी बाँवरी निर्धन बिलपत रहै किशोरी आपहुँ लेयो उबारी कबहुँ स्वासा स्वास नाम लगै मीठा सेस सकल होय खारी

नीचन सौं नीच

हरिहौं होऊँ नीचन सौं नीच मलिन पतित हिय धसि धसि जावै बिरथा जगति कीच नाम कौ बीज सद्गुरु ने दीन्हा न होई प्रेम भक्ति सींच हरि गुरु चरण अनुराग न कीन्हा रहै भव बन्धन खींच जानै अपनी दुर्गति निश्चित फिरै पुनि पुनि आँखें मीच हा हा नाथ चरण रति दीजौ बाँवरी डोले भव सिन्धु बीच

बोझ अहम को भारी

हरिहौं बोझ अहम कौ भारी दिन दिन बाढ़त दून सवाया हिय सौं न जाय निकारी मद मत्सर विषय भोग वासना सब हिय आनि पसारी नाम भजन कौ रुचि न उपजै भजन लगै अति खारी बाँवरी फिरै जगति बौराई रही हिय मोह ममता डारी कोऊ भाँति हरि भजन बनै न ताड़न कौ अधिकारी

कृपा की कोर

कृपा की कोर अब कर दो करुणामयी बरसाने वाली हूँ निर्बल बल नहीं कोई कृपा तुम्हरी सौं बलशाली नहीं कोई भक्ति न शक्ति नहीं कोई योग नहीं तप बल तुम्हारा नाम भी भूली मलिन हृदय भरा बस छल यही हृदय करूँ अर्पण यही मेरी निधि खाली कृपा की कोर अब कर दो करुणामयी बरसाने वाली हूँ निर्बल बल नहीं कोई कृपा तुम्हरी सौं बलशाली तेरा ही नाम धन पाऊँ तेरा हरदम रहे चिन्तन निर्धन हूँ लाडली कब से तेरी सेवा करूँ निशदिन  यही रहै कामना तेरी पूजा की होऊँ थाली कृपा की कोर अब कर दो करुणामयी बरसाने वाली हूँ निर्बल बल नहीं कोई कृपा तुम्हरी सौं बलशाली कहाँ जाऊँ किसे टेरुं नहीं कोई ठौर अब पाऊँ हा राधे ही टेरत टेरत निशिबासर मैं अकुलाऊँ होऊँ तुम्हरौ ही जन प्यारी तुमहिं करो मेरी रखवाली कृपा की कोर अब कर दो करुणामयी बरसाने वाली हूँ निर्बल बल नहीं कोई कृपा तुम्हरी सौं बलशाली कृपा की दृष्टि अब करदो स्वामिनी    तुम्हीं बस मेरी मेरी राधा मेरी प्यारी कहे बाँवरी दासी बस तेरी करूँ अर्पण मैं अश्रु बस यही निधि मेरी आली कृपा की कोर अब कर दो करुणामयी बरसाने वाली हूँ निर्बल बल नहीं कोई कृपा तुम्हरी सौं बलशाली

जय गोविंदा जय मुरलीधर

*जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *श्रीप्रिया हियमणि नटवर नागर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *आनन्द घन नव नव रस सागर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *रसकेलि प्रवीण प्रेम रस चातर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *परम् कृपामयी रूप उजागर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *रसिक शिरोमणि श्रीश्रीराधावर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *श्यामल रूप ललित रत्नाकर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *रस लोभी प्रिया चरण सेवातुर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर* *बाँवरी दासी गाये कृपा कर* *जय गोविंदा जय जय मुरलीधर*

ढोंग भक्ति को

हरिहौं ढोंग भक्तिन कौ भारी साँचो नाम न एकहुँ निकसै फिरै जगति भोग पसारी भोग पदार्थ मनहिं धसै गहरै जावत नाँहिं निकारी कौन भाँति चित्त भजन लगै बाँवरी नाम लगै सुखकारी जन्मन गमाई रही मूढ़ा बहुतेरे होवत जात ख़्वारी कौन भाँति नाम रस पीवै बाँवरी ताड़न कौ अधिकारी

वृन्दावन रस अनुराग

हरिहौं दीजौ वृन्दावन अनुराग नाम टेरत दृगन बहैं निशिबासर कबहुँ ऐसो होय भाग हा हा नाथ मोह मत्सर रहै घेरत हिय भजन न लाग कबहुँ नाम रस पिये हिय भीजै मेरो बुझत वासना आग कबहुँ हरि चरणन लगै प्यारे करै बाँवरी विषय त्याग भजन की बात न सुहावै कबहुँ ज्यों जल बहती झाग

रे मन

रे मन हिय धर श्रीयुगल चरणकमल क्षण क्षण सुमिरै क्षणहुँ न बिसरै यहि सम्पति विपुल सेवत सुख पावत निशिबासर यहि प्रेम कौ फल श्रीयुगल चरण हिय धरै बाँवरी होवत मन निर्मल सकल वासना हिय की छुटै मिलत नाम कौ बल यहि अरजा करै गुरु चरण कमल सौं नासै घन तिमिर सकल

कीन्ही बड़ी ठगोरी

हरिहौं कीन्हीं बड़ी ठगोरी नाम धन कछु संचय न कीन्हीं ढोंग बढ़ावत जोरी कान दिये न सन्तन की बातां बाँवरी जगति दोरी नाम भजन की रीति बिसारी भाव भजन सौं कोरी कबहुँ छुटे दम्भ हिय कौ पतित बाँवरी करै निहोरी हमरो कोऊ बल नाँहिं नाथा तुमहिं किये सब होरी