कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा

*कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा*

कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा
इस प्रीति के गीत सदा गाऊँ

हे प्रियतम एक ही विनती है
उस श्रृंगारिणी का श्रृंगार न हो पाऊँ
तो उस मधुर ललित श्रृंगार की एक झरण ही करदो
उस श्रृंगारिणी के चरण कमल का कोई श्रृंगार न हो पाऊँ
उन चरणों की रज हो जाऊँ

नहीं कोई योग्यता ऐसी 
कोई पुष्प बनूँ बनमाल का मैं
उन उलझे महके श्रृंगारों की
मीठी सी पुलकन हो जाऊँ

मधुर कमलिनी जिसे चरण धरें
नहीं नूपुर का हुई घुँघरू कोई
एक खनक रुनक ही कर देना
राधा राधा कह इठला जाऊँ

जिस हृदय में नाम की गूँज उठे
जिस जिव्हा पर वह गीत सजे
जिस भाव से हो श्रृंगार मधुर
चरण रज बाँवरी बन जाऊँ

कर दो प्रियतम मुझको कुछ ऐसा
इस प्रीति के गीत सदा गाऊं

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