6

*प्रेम हिंडोरा 6*

पुनः हिंडोरा सजाय सजाय बैठी यह बाँवरी , परन्तु आज अपनी प्राण प्यारी जोड़ी कु हिय हिंडोरे पर विराजित न देख अकुलाय रही। हा स्वामिनी !हा प्राणे ! दासी तो सदा से अपराध ही करती रही है स्वामिनी जु , आपकी उदारता में कबहुँ कमी न रही है , हिय के भाव कुभाव सदा स्वीकार की हो किशोरी जु। आज क्या अपराध बन गयो दासी सु , हे प्राणेश्वरी !आपके चरणों की रज भी छू न पाय रही हूँ। जानती हूँ आपकी चरण रज का स्पर्श भी मेरे भाग्य या मेरे किसी कर्म फल का हिस्सा तो नहीं है परन्तु ऐसी उदारा स्वामिनी की कृपा में कभी कमी भी तो नहीं है।

   प्राणेश्वरी !क्या आज सेवा स्वीकार न करोगी। कब यह दासी आपको अपने प्राण प्रियतम सँग अपने हिय वासित हिंडोरे में गलबहियाँ दिये , झूलते हुए निहार पायेगी। हे करुणेश्वरी !आपकी करुणा तो अनन्त है, क्या आज इस हिंडोरे का स्पर्श न करोगी, क्या दासी के प्राण शीतल न करोगी स्वामिनी। क्या हिंडोरे में लगा एक एक पुष्प कुमला जाएगा ऐसे ही प्राणेश्वरी। क्या आज प्रियतम की वंशी ध्वनि सुनकर आह्लादित न हुई आप। क्यों अपनी दासी को अपनी चरण रज से भी दूर रखी हो। हे प्राणेश्वरी !जब प्राणों की स्वामिनी ही तुम हो तो तुम्हारे बिना इस दासी ने प्राण रखाये ही क्यों है।

    पुनः पुनः हृदय सजाए हुए प्रेम हिंडोरे को देख देख अकुलाय रही यह दासी। क्या यह हिंडोरा आज रिक्त ही झूलता रहेगा ? क्या स्वामिनी अपने प्राण प्रियतम सँग अपना इस हिंडोरे पर न झूलेंगी, क्या हृदय उस अनुभूति से आज फूलेगा ही नहीं। यह प्राणों में उठता है दाह , यह पुकार इस दासी के हृदय से उठ रहा है , जो प्रेम हिंडोरे को सजाय बैठी, सजल नयन हो मुख से , हृदय से, प्राणों से एक ही पुकार लगा रही है हा राधे ! हा स्वामिनी ! हा प्राणेश्वरी ! हा करुणेश्वरी !हा किशोरी...... ...... ..

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून