नीचन सौं नीच
हरिहौं होऊँ नीचन सौं नीच
मलिन पतित हिय धसि धसि जावै बिरथा जगति कीच
नाम कौ बीज सद्गुरु ने दीन्हा न होई प्रेम भक्ति सींच
हरि गुरु चरण अनुराग न कीन्हा रहै भव बन्धन खींच
जानै अपनी दुर्गति निश्चित फिरै पुनि पुनि आँखें मीच
हा हा नाथ चरण रति दीजौ बाँवरी डोले भव सिन्धु बीच
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