कीन्ही बड़ी ठगोरी
हरिहौं कीन्हीं बड़ी ठगोरी
नाम धन कछु संचय न कीन्हीं ढोंग बढ़ावत जोरी
कान दिये न सन्तन की बातां बाँवरी जगति दोरी
नाम भजन की रीति बिसारी भाव भजन सौं कोरी
कबहुँ छुटे दम्भ हिय कौ पतित बाँवरी करै निहोरी
हमरो कोऊ बल नाँहिं नाथा तुमहिं किये सब होरी
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