श्रीयुगल को लोभ

*श्रीयुगल कौ लोभ*

 श्रीयुगल कौ लोभ , जेई सुन चकित न भयो री । जाने हैं री सब   अलियाँ री , इन बिहारी बिहारणी जु को क्या लोभ होवै री , याको लोभ होय नित्य बिहार। यही बिहार का लोभ प्रियाप्रियतम को नित्य बिहारी बिहारणी करै री। भरे रहें यह क्षण क्षण बिहार में। याको यह लोभ बढतो ही जावै री। जेई बिहार ही युगल को वास्तविक सुख होय री। अलियन हिय को सुख होय री।

    जेई बिहार जितनो गाढ़ होतो जावै जेई के हिय की तृषा बढ़ती जावै री , लोभ बढतो जावे री , मिले मिले ही मानो कबहुँ न मिले री। ऐसो लगे कोई सिंधु में डूब डूब जावे री पर एक बूंद की तृप्ति न होवै री। जेई प्रेम सिंधु, याको बिहार होय गयो री। जितना बिहार गाढ़ होय गयो उतनी अतृप्ति भीतर

*मिलत मिलत अकुलाय उमगि......*

श्रीयुगल को स्वाद बिहार
युगल हिय उन्माद बिहार
युगल हिय आह्लाद बिहार
  
   यह बिहार ही इनको सम्पूर्ण खेल होय री। यही बिहार ही इनको स्वाद , आह्लाद होवै री। नित्य यही उन्माद में भरे रहवैं। यही बिहारणी आह्लादिनी की भाव वृत्तियाँ जेई बिहार को भर भर गावैं री , जेई बिहार को रचावैं, यही बिहार को सजावैं री। यही तृषा श्रीयुगल हिय में भर भर पिलावैं री। जैसे कोई सिन्धु से ही बिन्दु उठा पुनः सिंधु में उड़ेल रहवै। बिंदु को अपना कोई पृथक स्वभाव न होय री , वह तो पुनः पुनः इस सिन्धु में लुप्त होने को तृषित रहवै। 

    जेई रस बाँवरी जोरि बिहारी बिहारणी..... बिहारी बिहारणी ......बिहारी बिहारणी का आह्लाद , उन्माद बढतो रहवै री, उन्माद बढतो रहवै , लोभ बढतो रहवै री, श्रीयुगल कौ लोभ ..........नित्य बिहार

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