प्रीति हमारी काँची

हरिहौं प्रीति हमारी काँचो
काँची देह बनी माटी की रँग चढ़त न साँचो
मूढ़ बाँवरी जगति धावै हरि सौं प्रेम न रांचो
अधम जाने न नेम प्रेम कौ कोरा ज्ञान ही बांचो
खाली पड़ो नाम कौ खाता नाथा आपहुँ जाँचो
आपहुँ निभावो रीति प्रेम की रीति तुम्हरी साँचो

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