हिंडोरा 1
*प्रेम हिंडोरा*
प्रेम हिंडोरा ,हाँ प्रेम हिंडोरा, पुष्पों से सजा हुआ।पर पुष्प हिंडोरा क्यों नहीं सखी, प्रेम हिंडोरा कहने में जो आनँद आवे न अलियन कु , सोई अनुभव कर री। जेई प्रेम हिंडोरे में प्रेम ही पुष्प, प्रेम ही डोर , प्रेम ही हिंडोर होय गयो री। अलियन से जेई को राग, जेई को अनुराग भर भर सजायो री, अपने प्राण प्रियाप्रियतम जु के लिए *प्रेम हिंडोरा* जेई हिंडोरे पर जब सजकर हमारे प्राण हमारे युगल परस्पर आलिंगन देय , झूलेंगे री, आहा!!कितो आनँद आयगो। हमारे प्यारे प्यारी को प्रेम हिंडोरा। सभी सखियाँ मंजरियाँ प्रेम पगी इस हिंडोरे का श्रृंगार कर रही हैं। युगल के विश्राम हेतु सहचरियों ने पास ही एक पुष्प शैया भी सजा दी है।
पर इन उन्मादिनी , बाँवरी अलियन का हृदय तो आज इस हिंडोरे की झूलन से ही स्पंदित होय रह्यौ री। पुनः पुनः झूले को स्पर्श करती यह बांवरियाँ, जैसे युगल के विहार से ज्यादा आतुरता आज इनमें भरी जा रही हो। आह!!प्रेम हिंडोरा हमारे प्यारे प्यारी का प्रेम हिंडोरा सज गयो री!!उन्मादिनी हों भी क्यों न , उस प्रेम उन्मादिनी परम भाविनी अपनी प्राणेश्वरी की भाव कणिकाएँ ही तो हैं न सब , इस जोड़ी को लाड करना ही तो इनके प्राणों का सकल सुख है।
जैसे ही श्रीयुगल की दृष्टि इस प्रेम हिंडोरे पर पड़ती है, प्यारी जु दौड़ती हुई हिंडोरे की ओर जाती है। सब भाव , सब उन्माद जानती है अपनी दासियों के हृदय का, जैसी व्याकुलता अलियन ने आज हिंडोरे को सजाते हुए दिखाई वैसी ही व्याकुलता ,अलियन सुख हेतु प्यारी जु दिखा रही। झट से हिंडोरे पर बैठ गयी । अलियाँ प्यारे जु को भी हिंडोरे पर प्यारी जु सँग बिठा मधुर मधुर गायन आरम्भ करती हैं। हिंडोरा तीव्र गति से झूलता है तो प्यारी जु प्यारे जु से जुड़ कर बैठ जाती हैं। अभी इन अलियन का मन कहाँ भरा। तनिक जोर सौं झोटा देय री बाँवरी , आहा!!प्यारी जु ने अपने दोनो हाथ ही प्यारे जु की कमर में डाल दिये, जैसे अभी गिरने ही लगी हों , पर भोली को क्या पता इन अलियन की अठखेलियाँ। धीरे धीरे सभी सखियाँ अपनी अपनी सेवा में लग जाती हैं।
हिंडोरे पर आलिंगित उनके प्राण , आहा री !नेत्रों में यही छवि भर रही हैं जैसे उनके प्राण उनकी सेवा को स्वीकार कर लिए। पर यह क्या!!युगल तो नेत्र मूंद हिंडोरे पर विराजित हो गए, ऐसे तो यह दोनो रस जड़ हो जाएंगे। आगे की लीला हेतु एक सखी ने पुनः हिंडोरे को खींच झोटा भर दिया। सभी सखियाँ प्रसन्न हो खिलखिलाने लगी जब युगल पुनः चेतन हो झूल रहे।
प्यारी जु के स्पर्श को अनुभव कर लाल जु का हृदय व्याकुल होने लगा। प्यारी जु के तो जैसे नेत्र ही मूंद गए, रस स्पर्श से। जोर से झोटा लेते हुए सहसा प्यारी जु की पायल खुल जाती है, जिसे सखि उठा लेती है। हिंडोरा जैसे ही रुकता है लाल जु दासी के हाथ से पायल लेकर प्यारी जु को पहनाने लगते हैं। प्यारी जु के कोमल चरण , जैसे प्यारे जु की सर्वस्व निधि इन्हीं चरणों मे ही है। इन चरणों का स्पर्श , जैसे आराधक अपने आराध्य की साधना में ही विराजित हो जाता है। इस मधुर प्रेममई आराधना का सम्पूर्ण फल ही तो उसका जीवन हैं। प्यारे जु ने वह पायल प्यारी के चरणों मे पहना दी है, जैसे प्रेम देवी की आराधना पूर्ण हो चुकी है.........
Comments
Post a Comment